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देवियाँ -
रणरूपी विषको कालक मृत समान क्या पेय है ?
माता - तीर्थंकर के मुखकमलसे निर्गत ज्ञानामृत ही पेय है। इस ज्ञानामृत से जन्म-मरणकी संसार-परम्परा छिन्न हो जाती है ।
देवियाँ - लोक में बुद्धिमानोंको किसका ध्यान करना चाहिये ?
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माता - पञ्चपरमेष्ठी, आगम और आत्मतत्वका ध्यान करना श्रेयस्कर है । संसार परिभ्रमणके कारणभूत आतं और रौद्र ध्यान त्याज्य हैं ।
देवियाँ - किस कार्य करनेमें शीघ्रता करनी चाहिये ?
माता -- संसार-उच्छेदक अनन्तज्ञान और चारित्र के प्राप्त करने में शीघ्रता करनी चाहिये। जो आत्मकल्याणके कारणीभूत रत्नत्रयधर्मको धारण करने में समयकी प्रतीक्षा करता है, वह आत्मकल्याणसे दूर रहता है । अतः धर्मपालन में शीघ्रता करना आवश्यक है ।
देवियां -- संसारमें सज्जनोंके साथ जानेवाला कौन है ?
माता - दयामय अहिंसाधर्म ही साथ जानेवाला है, यही जीवोंका रक्षक है ।
देवियाँ - धर्मके लक्षण कौन-कौन हैं ? धर्मसाधनसे क्या फल प्राप्त होता है ?
माता - आत्मतत्त्वको अनुभूति कर द्वादश तप, रत्नत्रय, महाव्रत, अणुव्रत, शील और उत्तमक्षमादि धारण ये धर्मके लक्षण हैं । धर्मका फल कर्मनिर्जरा है ।
देवियां -- धर्मात्माओंके चिह्न क्या हैं ?
माता — उत्तम शान्तस्वभाव होना, अहंकार और ममकार न होना, शुद्धाचरणका पालन करना, धर्मात्माओंके चिह्न है ।
देवियाँ - पापके चिह्न और फल क्या है ? तथा पापी जीवों की पहचान क्या है ?
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माता -- मिथ्यात्व क्रोधादि कषाय अनायतन सेवन पापके चिह्न हैं । राग, द्वेष, मोह, क्लेशादि पापके फल हैं । अत्यधिक क्रोध, मान, माया और लोभ करने वाला, दूसरोंका निन्दक और स्व-प्रशंसक, आर्त-रोद्रध्यानधारी होना पापियोंके चिह्न हैं ।
देवियाँ - लोक विचारवान कौन है ?
१०२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी काचार्य-परम्परा