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कहने लगती कि हे माता ! क्या तुमने इस संसार में एक क्षीण चन्द्रमाको देखा है ? व्याजस्तुति द्वारा वे माताकी मुखकान्तिका चित्रण करती और बतलाती हैं. कि माताकी मुखकान्ति जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, चन्द्रमा उतना ही क्षीण होता जाता है। __ देवियाँ माताके मुखकमलका अनेक दुष्टियोंसे काध्यात्मक चित्रण करती थीं। वे कभी उनके मुखकमलको भ्रमरसहित चित्रित करतो, तो कभी कमलरहित । __देवाङ्गनाएँ काव्यका सृजन करती हुई कहती कि- "हे कमलनयनी ! ये भ्रमर आपके मुखरूपी कमलको आनात कर कृतार्थ हो जाते हैं। अतएव ने फिर पृथ्वीसे उत्पन्न हुए कमलके पास नहीं जाते हैं । इस प्रकार देवाङ्गनाएं काव्यपाठ द्वारा माताके मनको आनन्दित करती थीं। वे इष्टभावके स्वरूपको काव्य-बन्ध द्वारा प्रस्तुत करती थीं। लय वर्ण और दोघं वर्गोंका प्रयोग इस रूपमें करती थीं, जिससे शब्द और अर्थमें सामंजस्य एवं माधुर्य उत्पन्न हो जाता था । सुकोमल भावनाओं और अनुभूतियों का प्रचण्ड वेग उपस्थित कर वे माताको भाव-विभोर बनाती थीं। देवाङ्गनाओं द्वारा पठित काव्योंमें संगीतात्मकता और भावमयताके साथ सुकोमल भावनाओंका भाण्डार निहित रहता था । इनके काव्योंमें निम्नलिखित गुण समवेत रहते थे :
(१) अन्तवृत्तिका प्राधान्य, (२) संगीतात्मकता, (३) रसात्मकता, (४) रागात्मक अनुभूतियोंकी कसावट, (५) शब्द-चयन और चित्रात्मकता, (६) समाहित प्रभाव, (७) मार्मिकता, (८) गेयता, (९) मधुरता।
इस प्रकार देवियाँ काव्य-सृजन द्वारा माता त्रिशलाका मनो-विनोद करती थीं | गोति-नाट्य एवं प्रबन्धों द्वारा अपूर्व रसका चमत्कार उत्पन्न करती थीं। पहेलियों एवं प्रश्नोत्तरोंछारा मनोविनोद
माता त्रिशलाके मनोरंजनार्थ देवियां प्रश्न करती है कि इस संसारमें किसके वचन श्रष्ठ और प्रामाणिक हैं ? माता-सर्वज्ञ, हितैषी और वीतरागी तीर्थकरके वचन ही श्रेष्ठ हैं।
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : १०१