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कार्योको यशोगाथासे जन-जन परिचित हो आयेगा | परम्परागत धर धार्मिक कर्म काण्ड समाप्त हो जायेंगे । जनताके समक्ष रूढ़ियोंकी आलोचना कर धार्मिक प्रतिष्ठानके विरुद्ध कान्तिका शंखनाद करेगा | वह मनुष्य-मनुष्यके बीच होनेवाली दलालीको बन्दकर उदार नीतिका प्रचार करेगा। जातिप्रथा और कर्मकाण्डपर प्रहारकर अपने क्रान्तिकारी विचारों द्वारा जनमानसको आलोकित कर देगा। वह जड़-चेतनका स्वतंत्र अस्तित्व प्रतिपादित कर एकाधिकारका विरोध करेगा । व्यक्तिकी स्वतंत्रताका उद्घोषकर अनेकान्तास्मक दृष्टिकी स्थापना करेगा । उसकी अपनी राह होगी, अपनी करनी होगी और वह अपने बल-पौरुष द्वारा स्वतन्त्रताका प्रचार करेगा ।
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धरणेन्द्र भवन अवधिज्ञान
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नागेन्द्र भवन के अवलोकनसे गर्भस्थ बालक अवधिज्ञानका धारी होगा । जन्मकालसे ही वह अपनी प्रतिभा द्वारा लोगोंको आश्चर्यचकित करेगा । आत्मा और ज्ञान ज्योतियाँ जगमगा जायेंगी और सर्वत्र प्रकाश व्याप्त हो जायगा । सारे अन्तर्विरोध समाप्त हो जायेंगे | आत्मदर्शन द्वारा वह जगतको निराकुल बनाने का प्रयास करेगा । जन्मसे ही अद्भुत रोशनी प्राप्त कर वह वीतरागता और अनेकान्तवादका अमृतवर्षण करेगा । उसका चित्त भवसागर के तटपर चरम शक्तिका अन्वेषण करेगा । उसकी साधना के सम्मुख सांसारिक सुख अकिंचन हो जायगा | समस्त व्यवधान, अमंगल, कोलाहल शान्त हो दिव्य आलोक प्रस्तुत करेंगे | आत्म शुद्धिकी दिशामें बढ़ता हुआ वह एक नयां आलोक प्राप्त करेगा | धर्मान्ध जनता विवेक प्राप्त कर उसका नेतृत्व स्वीकार करेगी ।
रस्तोंकी विशालराशि : अनन्तगुण
स्वप्न में रत्नराशिका दर्शन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्ररूप रत्नत्रयकी प्राप्तिका प्रतीक है । जीवनका वास्तविक कल्याण रत्नत्रयसे ही होता है। इस स्वप्न-दर्शनका फल समता, सहिष्णुता आदि लोकोत्तर गुणोंकी प्राप्ति भी हैं। बालक अपने समस्त आचरण और दिनचर्या में सजग रहेगा । सभी प्रकारके संयम ग्रहण करेगा । वह ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, लोभ, मोह, छल, कपट, घृणा आदिसे रहित होगा । न उसका कोई शत्रु होगा, न मित्र, वह सभीके प्रति समभाव रहेगा। आकाशके समान व्यापक शुद्ध अन्तःकरण - निर्मल हृदय, कमलपत्र के समान सर्वथा अलिप्स और सिंहके समान निर्भय विश्चरण करेगा । वह अपना ज्ञान जन-जनको बांट कर मुक्तिका पथ प्रशस्त करेगा ।
९४ तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा