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निधूम अग्नि
निर्वाण
गर्भस्थ बालक अपनी समस्त कर्म -कालिमाको नष्टकर निर्वाण प्राप्त करेगा 1 आत्माका सच्चा सुख निर्वाण प्राप्ति ही है । इसीके लिये संयम तपकी कमसे साधना को जाती है । बालकका भविष्य बहुत ही उज्ज्वल हैं। वह युद्ध कर अपनी आत्माको शाम मुख-प्राप्तिकी ओर लगायेगा । भारतकी मानसिक और सांस्कृतिक पंगुताको समाप्तकर स्वस्थ चिन्तनकी वीणा वादित मधुर् करेगा। लोक-जीवन और लोकशासन पावनताका अनुभव करने लगेगा | अज्ञान, अधर्म, अन्याय और अत्याचार समाप्त हो जायेंगे | आत्म-स्वातन्त्र्यको भावना द्वारा वह जनमानस के मनोवलकी वृद्धि करेगा। आत्मा अज्ञान, मोह और मिथ्यात्वसे मुक्त हो जायगी । विश्व बन्धुत्व और विश्व मंत्री की भावनाओंका मार होगा ।
भावी बालक स्वयं अपना तो उद्धार करेगा हो, अपने उपदेशों द्वारा आडम्बर और औपचारिकताओंका भी अन्त करेगा । सच्ची रुचि, सच्ची पहचान और सच्चा आचरण उसके जीवनका लक्ष्य होगा ।
इस प्रकार विशिष्ट निमित्तज्ञानी महाराज सिद्धार्थ द्वारा स्वप्नोंके उपकरने युक्त फलको सुनकर त्रिशला धन्य हो गयी और अपने भाग्यकी सराहना लगी । भाग्यशाली पुत्रका जन्म अवगतकर उसका मन अपार वात्सल्य और उत्साह से भर गया। वह उस भाग्यशाली क्षणकी उत्कंठापूर्वक प्रतीक्षा करने लगी | माँ त्रिशलाका मन होनेवाले बालककी विशेषताओंको ज्ञात कर अत्यन्त शान्त हुआ। वह सोचती है- "जिस दिन मेरी कुक्षिसे यह बालक जन्म ग्रहण करेगा, उस दिन मुझ जैसी बड़भागिन कौन होगी ? माँकी साध सुयोग्य सन्तान प्राप्त करने की है। यदि यह प्राप्त हो जाये, तो मातृत्व चरितार्थ हो जाता है ।" पुण्य-चमत्कार
पुण्योदमसे संसार के समस्त वैभव प्राप्त होते हैं। पुण्यात्मा के यहाँ लक्ष्मी दासी बन जाती है, कुबेर किंकर हो जाता है और जगतके वैभव हस्तामलक हो जाते हैं। महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के पुण्य- वैभवका कहना ही क्या, जिनके यहाँ अच्युत स्वर्गसे च्युत हो तीर्थंकर महावीरका जीव पुत्ररूपमें जन्म ग्रहण करनेवाला है । सारा उपनगर हर्ष उल्लास और उमंग से अनुस्यूत है । सिद्धार्थका घर-आंगन देव-देवांगनाओंका क्रीडास्थल बना हुआ है । महावीरका गर्भकल्याणक सम्पादन करनेके लिये मनुष्योंको तो बात ही
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क्या, चतुर्निकायके देव भी आतुर हैं । वैशालीके समस्त नगरों और उपनगरों की
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कृषि - सम्पत्ति बढ़ रही है। गोधन, अश्वघन और गजधनकी वृद्धि हो
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : २५