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था। यह धनिक तथा ऋग्वेदादिक ग्रन्थोंमें निपुण था । गोबहुलकी एक गोशाला थी। एक बार मंक्खलि भिक्षार्थं हाथमें चित्रपट लेकर गर्भवती भद्रा के साथ ग्रामानुग्राम विचरण करता हुआ शरवण सनिवेश में आया । उसने गोबहुलकी गोशाला में अपना समान रखा और भिक्षार्थ ग्राम में चला गया। उसने ग्राम में निवास योग्य स्थानकी खोज की, पर उसे कोई उपयुक्त स्थान नहीं मिला 1 फलतः उसने गोशाला के एक भाग में चातुर्मास व्यतीत करनेका निश्चय किया | नौ मास साढ़े सात दिन व्यतीत होनेपर मंक्खलिकी पत्नी भद्राने एक सुन्दर और सुकुमार बालकको जन्म दिया। बारहवें दिन माता-पिताने गोशालामें जन्म लेने के कारण शिशुका नाम गोशालक रखा । क्रमशः गोशालक बड़ा हुआ और शिक्षा प्राप्तकर प्रतिभासम्पन्न बना । गोशालकने भी स्वतंत्र रूप से चित्रपट हाथमें लेकर अपनी आजीविका सम्पादित करना आरम्भ किया । गोशालक तीर्थंकर महावीरके सम्पर्क में भी आया और पृथक् सम्प्रदाय की स्थापनाको कामना से अलग हो गया |
गोचालकको अष्टतिगिता परिज्ञान या वतः वह जनताको लाभअलाभ, सुख-दुःख और जीवन-मरणके विषयमें उत्तर देता था। इस अष्टांगनिमित्तज्ञानके बलपर ही उसने अपनेको जिन केवली, सर्वज्ञ आदिके रूपमें घोषित किया था । गोशालक द्वारा प्रवर्तित सिद्धान्त नियतिवाद है । इस सिद्धान्तका अभिप्राय यह है - " अपवित्रता के लिये कोई कारण नहीं होता, कारणके बिना ही प्राणी अपवित्र होते हैं । प्राणीको शद्धिके लिये भी कोई हेतु नहीं होता, कोई कारण नहीं होता । हेतुके बिना, कारणके बिना प्राणी शुद्ध होते हैं | अपने सामर्थ्य से कुछ नहीं होता और न दुसरेके सामर्थ्य से कुछ होता है । पुरुषार्थसे भी कुछ नहीं होता है। किसीमें बल नहीं, वीर्य नहीं, पुरुषशक्ति नहीं और पुरुषपराक्रम भी नहीं है। सर्वसत्व, सर्वप्राणी, सर्वभूत, सर्वजीव तो अवश, दुर्बल और निदर्य है । वे नियति (भाग्य) - संगति एवं स्वभाव के कारण परिणत होते हैं और सुख-दुःखका उपभोग करते हैं "
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नियतिवादके उपर्युक्त विश्लेषणसे निम्नलिखित तथ्य प्रसूत होते हैं
(१) पुरुषार्थ और आत्मविश्वासका अभाव |
(२) नियतिवश ही कार्योंका सम्पादन |
(३) प्राणी की पुण्य और पापसे अलिप्तता । (४) नियति जैसा कराती है. वैसा करनेको प्रेरणा | (५) शुद्धि और अशुद्धिके लिये कारणोंका अभाव |
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ७५