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(६) प्राणियों की अवशता और निर्वीर्यता ।
(७) सुख-दुःख की प्राप्ति नियतिके अघोन है, पुरुषार्थाधीन नहीं । उच्छेदबाद- प्रवर्तक : अजित केशकम्बल
केशोंका बना कम्बल धारण करनेके कारण ये अजित केशकम्बलो कहलाते थे । एफ० एल० वुडवाल्डको धारणाके अनुसार कम्बल मनुष्यके केशोंका ही बना होता था । इनकी मान्यता लोकायतिक दर्शन जैसी ही थी। कुछ विद्वानोंका यह भी मत है कि नास्तिक दर्शनके आदिप्रवर्त्तक यही थे । बृहस्पतिने इनके अभिमतोंको ही विकसित रूप दिया है । उच्छेदवादका अर्थ यह है कि दान, यज्ञ और हवन आदि कुछ भी तथ्य नहीं । अच्छे या बुरे कर्मोंका फल और परिणाम नहीं होता है । इहलोक-परलोक, माता-पिता, स्वर्ग-नरक आदि कुछ भी नहीं है । इहलोक और परलोकका अच्छा ज्ञान प्राप्तकर उसे दूसरोंको देनेवाले दार्शनिक और योग्यमार्गपर चलनेवाले श्रमण-ब्राह्मण इस संसारमें नहीं है | मनुष्य चार भूतोंका बना हुआ है । जब वह मरता है, तब उसमें समाहित पृथ्वीधातु पृथ्वीमें, आपोधातु जलमें, तेजांधातु तेजमें और वायुषा वायुमें जा मिलते हैं तथा इन्द्रियां आकाशमें चलो जाती हैं। भूत व्यक्तिको अर्थीपर रखकर चार पुरुष श्मशानमें ले जाते हैं। उसके गुण-अबगुणोंकी चर्चा होती है, उसकी अस्थियाँ श्वेत हो जाती हैं, उसे दो जानेवाली आहुतियां स्मरूप वन जाती हैं।ता मुर्ख व्यक्तियोंने खड़ा किया है, जो कोई आस्तिकवाद बतलाते हैं, उनका वह कथन बिलकुल मिथ्या और वृथा है। शरीरके नाशके पश्चात् विद्वानों और मूर्खोका उच्छेद होता है । वे नष्ट हो जाते हैं । मृत्युके अनन्तर उनका कुछ भी शेष नहीं रहता ।
इस प्रकार अजित केशकम्बलने उच्छेदवादका प्रवर्तनकर परलोक, आत्मा और पुण्य पापका निषेध किया है। इस सिद्धान्तमें निम्नलिखित तथ्य समाहित हैं:
(१) पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इन चार भूतोंका अस्तित्व ।
(२) प्रत्यक्षदृष्टिगोचर पदार्थ ही सर्वस्व है, परोक्षपदार्थोंका अस्तित्व सिद्ध नहीं, अतएव उनका अस्वीकरण !
(३) शरीर के साथ ही आत्माका भी उच्छेद |
(४) पुण्य और पाप वास्तविक नहीं, कल्पित ।
१. The book of graducl Sayings Volum 1 Page 265.
3. Barua. O. P. Cit., Page 288.
७६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा