________________
है और लज्जाका मूल पापमय प्रवृत्ति है। मैं तो पापमय प्रवृत्तिसे दूर हूं । अतः मुझे वस्त्रोंकी क्या आवश्यकता है" पूर्णकाश्यपको निस्पृहता और असंगता देखकर जनता उनको अनुयायी होने लगो ।
यतः पूर्णकाश्यप अक्रियावादके प्रवर्तक थे, अतः उनका अभिमतथा-"अगर कोई कुछ करे या कराये, काटे या कटाये, कष्ट दे या दिलाये, शोक करे या कराये, किसीको कुछ दुःस्त्र हो या कोई दे, डर लगे या डराये, प्राणियोंको मार डाले, चोरी करे, घरमें सेंध लगाये, डाका डाले, एक ही मकान पर धावा बोल दे, बटमारी करे, परदार-गमन करे या असत्य बोले तो भी उसे पाप नहीं लगता। तीक्ष्ण धारवाले चकसे यदि कोई इस संसारके पशओंके मांसका बड़ा ढेर लगा दे तो भी उसमें बिलकुल पाप नहीं है, उसमें कोई दोष नहीं है। गंगा नदीके दक्षिणी किनारे पर जाकर यदि कोई अनेक दान करे या करवाये, यश करे या करवाये, तो भी उसमें कोई पुण्य नहीं मिलता। दान, धर्म, संयम और सत्यभाषणसे पुण्यकी प्राप्ति नहीं होती।"२
उपर्युक्त उद्धरणसे निम्नलिखित निष्कर्ष प्रस्तुत होते हैं(१) क्रिया करने पर भी पाप और पुण्यसे अलिप्त रहना । (२) क्रिया सम्यक् और मिथ्यात्वका भेद-भाव नहीं। (३) क्रिया करनेकी प्रवृत्ति स्वाभाविक है, इससे जीव बन्धको प्राप्त नहीं
होता। (४) मन-वचन-कायः कृत, कारित और अनुमोदनामें तरतमभावका अभाव | (५) क्रियाका सम्पादन नैसगिक है और निसर्ग बन्धका कारण नहीं है।
अतएव क्रियाके प्रति निस्पृहता। नियतिवाद-प्रवर्तक मक्खलि गोशालक ___ मक्खलि गोशालक नियतिवादका प्रवर्तक था । मक्खलि उसके पिताका नाम था । इसी कारण वह मक्खलिपुत्र कहलाता था। गोशालकका जीवनवृत्त बौद्ध साहित्य के साथ भगवतीसूत्र, उवासगदसा आदि ग्रन्थोंमें भी पाया जाता है। कहा जाता है कि मक्खलिको भद्रा नामक पत्नी थी। वह सुन्दरी और सुकुमारी थी। एकबार वह गर्भिणी हुई। शरवण प्राममें गोबहुल नामक ब्राह्मण रहता १. बौखपर्व (मराठी) प्र० १०, पृ० १२७ तथा आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन,
२. आगम और विपिटक : एक अनुशीलन, पृ० ५. ७४ : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा