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in all history. Everywhere rmen's minds were displaying a new boldness, Everywhere they were waking up out of the tradition of kingships and priests and blood sacrifices and asking the most penetrating questions, it is as if the race had reached a stage of addescence,"
इस उसरणसे स्प है कि पूर्व छठी शताब्दी में मनुष्य समाज में अशांति और असंतोष फैला हुआ था। धर्मसिद्धान्तोंके प्रति विश्वास परिवर्तित हो रहे मे | राजनीति और समाजमें भी यथेष्ट परिवर्तन हो रहे थे। उस समय भारतमें कहीं राजतन्त्र या, तो कहीं गणतन्त्र । कुछ अंशोंमें दोनोंका समन्वय भी प्राप्त होता था। गणराज्यों में शासनको बागडोर जनताके हाथमें रहती थी अतः जनप्ता राजाओं द्वारा शासित नहीं होती थी। बज्जी, मल्ल और शूरसेन आदि गणराज्य थे। राजतन्त्रमें वंशक्रमानुगत एक राजा शासक होता था, जिसकी आशाका पालन समस्त जनता करती थी। ऐसे राज्योंमें अवन्ति, वत्स, कोशल और मगध प्रधान थे। ये जनपद साम्राज्य-स्थापनाके लिये आपसमें संघर्षरत रहते थे। राजतन्त्र भी सर्वत्र एक ही तरहका था, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। मगषमें अहो राजा सर्वश्रेष्ठ था, वहीं सिन्धुमें राजा केवल युबमें नेतृत्व करता था और शासनकायं वृद्धजनोंकी परिषद् द्वारा सम्पन्न होता था ।
वैदिक युगमें आर्यसभ्यताके प्रतिनिधि निम्नोक नव राज्य थे :
(१) गंधार-सिन्धुके दोनों ओर विस्तृत राज्य-जिसकी राजधानियां पूर्वमें तक्षशिला और पश्चिममें पुष्कलायती नामक नगरियोंमें थीं। छांदोग्य उपनिषद् (६।१४) के अनुसार विचारक उहालक, आणि, गंधारसे परिचित थे। जातक (संख्या ३७७ एवं ४८७) के अनुसार आरुणि पिता-पुत्र दोनों तक्षशिलाके विद्यार्थी थे। यह राज्य पर्याप्त विस्तुस या ।
(२) केकय-यहाँक दार्शनिक राजा अश्वपति प्रसिद्ध थे। (३) मन्द्र आचार्य पतंजलिको यहींका निवासी माना गया है ।
(४) वशकुशीनर--मध्यदेशका उत्तरी भाग ; गोपथब्राह्मण (२२९) में इसे उदोन देश कहा है।
(५) मत्स्य-राजस्थानका भरतपुर, अलवर, धौलपुरके आस-पासका प्रदेश। यह विनाफा प्रसिद्ध स्थान रहा है ।
१. महावीर-जयन्ती-स्मारिका, जयपुर १९७३, ५० २७. ६० : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा