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________________ तिलोय पण्णत्ती विशेषार्थ- नन्दीश्वर द्वीपको [ गाथा: १०४ - १०७ चारों दिशाओं में ५२ जिनालय अवस्थित हैं। आषाढ़, कातिक और फाल्गुन मासके शुक्ल पक्ष की अष्टमी के पूर्वाह्न में सर्व कल्पवासी देवोंसे युक्त सौधर्मेन्द्र पूर्व दिशा, भवनवासां देवोस युक्त चमरेन्द्र दक्षिण दिशामें व्यन्तर देवोंसे युक्त किम्पुरुष इन्द्र पश्चिम दिशा में और ज्योतिषी देवोंसे युक्त चन्द्र इन्द्र उत्तर दिशामें पूजा प्रारम्भ करते हैं। दो प्रहर बाद अपराह्नमें कल्पवासी दक्षिण में, भवनवासो पश्चिममें, व्यन्तरदेव उत्तरमें और ज्योतिपी देव पूर्व में आ जाते हैं। फिर दो शहर बाद पूर्व रात्रिको ये देव प्रदक्षिणा क्रमसे पुन: दिशा परिवर्तन करते हैं। इसके बाद दो प्रहर व्यतीत हो जाने पर अपर रात्रि को उसी प्रकार पुनः दिशा परिवर्तन करते हैं । इसप्रकार अहोरात्रिके ८ प्रहर पूर्णकर नवमी तिथिको प्रातः काल कल्पवासी आदि चारों निकायों के देव पूर्व श्रादि दिशाओं में क्रमश: दो-दो प्रहर तक पूजन करते हैं इसी क्रमसे पूर्णिमा पर्यन्त अर्थात् आठ दिन तक चारों निकायोंके देवों द्वारा अनवरत महापूजा होती है । २८ ] नन्दीश्वरद्वीप स्थित जिन प्रतिमाओं के अभिषेक, विलेपन और पूजा श्रादिका कथन कुव्वते अभिसेयं महाविभूवोहि ताण देविता । कंचरण कलस गर्दह, विजल जलेहि अर्थ -- देवेन्द्र, महान् विभूतिके साथ उन जिन विपुल सुगन्धित जल से अभिषेक करते हैं ।। १०४ ॥ कुंकुम कप्पूरेहि, चंदण - कालागरूहि ताणं विलेषणाई", ते कुरुते सुगंध - प्रतिमाओं का विलेपन करते हैं ।। १०५ ।। · अर्थ – वे इन्द्र कुकुम, कपूर, चन्दन, कालागर और अन्य सुगन्धित द्रव्योंसे उन सुगंधेहि ॥ १०४ ॥ प्रतिमाओंका सुवर्ण कलशों में भरे हुए - कुवेंदु - सुदहि, कोमल विमलेहि सुरहि गंधेहि । वर - - कलम तंडुले हिं', पूति जिजिद पडिमाम्रो' ॥ १०६ ॥ · - हि । गंधेह ॥ १०५ ॥ अर्थ-वे देव, कुन्दपुष्प एवं चन्द्र सदृश सुन्दर, कोमल, निर्मल और सुगन्धित उत्तम कलम नाग कुसुम धान्यके तन्दुलोंसे जिनेन्द्र - प्रतिमाओंकी पूजा करते हैं ।। १०६ ।। सयवंतराय चंपय माला पुण्णाग पहुवीहि । अवंति ताओ देवा, सुरहोहिं मालाहि ॥ १०७॥ अर्थ-वे देव सेवन्तीराज, चम्पकमाला, पुन्नाग और नाग आदि सुगन्धित पुष्प मालाओं से उन प्रतिमानोंकी पूजा करते हैं ।। १०७ ।। १. द. विलेयर, ब. विलेइसाई । २. ब. दुहि । ३. द. ज. पडिमाए । · -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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