________________
२६ ]
तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा : ९३-६८
अर्थ – कोयल- वाहन विमानपर आरूढ़, उत्तम रत्नोंसे अलकृत शरीरसे संयुक्त और नीलकमलपुष्प हाथमें धारण करनेवाला शतार इन्द्र भक्तिसे प्रेरित होकर यहाँ आता है ।। ९२ ।। गरुड - विमानारूढो, दाडिम-फल-लुचि सोहमाण करो । जिण चलण भतिजुत्तो, एदि सहस्सार इंदो वि ॥६३॥
+
अर्थ --- गरुड़विमान पर आरूढ़, अनार फलोंके गुच्छेसे शोभायमान हाथवाला और जिनचरणोंकी भक्तिमें अनुरक्त हुआ सहस्रार इन्द्र भी आता है ।। ६३ ।।
विगाहिव मारूढो, परासप्फल-लु चि-लंबमारण-करो ।
वर-दिव्य विनूदीए, आगच्छदि श्राणबिंदो दि ॥ ६४ ॥
अर्थ – विहगाधिप अर्थात् गरुड़पर आरूढ़ और पनस अर्थात् कटहल फलके गुच्छेको हाथ में लिये हुए आनतेन्द्र भी उत्तम एवं दिव्य विभूतिके साथ यहाँ आता है ।। ९४ ॥
पउम विमारणारूढो, पाणद-इ दो वि एदि भत्तीए । तु बुरु-फल-खुचि-करो, बर मंडल मंडियायारो ॥६५॥
-
अर्थ- पद्म विमानपर श्रारूढ़ उत्तम आभरणोंसे मण्डित प्राकृतिसे संयुक्त और तुम्बुरु
फलके गुच्छेको हाथमें लिये हुए प्राणतेन्द्र भी भक्तिवश होकर यहाँ आता है ।। ९५ ।।
परिपक्क उच्छु हत्थो, कुमुद - विमारणं विश्वित्तमारूढो । आणिदो वि ॥६६॥
विविहालंकार धरो, आगच्छ
अर्थ -- अद्भुत कुमुद - विमानपर श्रारूढ, पके हुए गन्नेको हाथमें धारण करनेवाला आरणेन्द्र भी विविध प्रकारके अलंकार धारण करके यहाँ आता है ।। ९६ ।।
-
-
आरूढो बर-मोरं, वलयंगद मउड हार-सोहंतो । सति-धवल - चमर-हत्यो, आगच्छ
-
- उत्तम मयूरपर चढ़कर, कटक, अंगद,
अर्थधवल चैबरको हाथमें लिये हुए अच्युतेन्द्र यहाँ आता
-
अच्चुवाहिवई ॥६७॥
मुकुट एवं हारसे सुशोभित और चन्द्र सदृश
।। ९७ ।।
त्रिदेवोंका पूजाके लिये आगमन
णाणाविह-वाहण्या, णाणा-फल- कुसुम-दाम-भरिव-करा । रारा - विभूति-सहिदा, जोइस वरण-भयरण एंसि भक्ति- जुवा ॥ ६८ ॥
१. द. ज. परिपक्क । २. द.म. क. ज. आगच्छिय । ३. द. ब. क. ज. संहतो
*