SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : १७. संमो महादिया प्रारूढो वर-तुरयं, वर-भूसण-भूसिदो विविह-सोहो । कदली - फल - लुबि - हत्यो, माहिदो एदि भत्तोए ।।७।। अर्थ – श्रेष्ठ घोड़ेपर चढ़कर, उत्तम भूषणोंसे विभूषित और विविध प्रकारकी शोभाको प्राप्त माहेन्द्र इन्द्र लटकते हुए केले हाथ में लेकर भक्तिसे यहाँ प्राता है ।। ८७ ।। हंसम्मि चंद - धवले, आरूढो विमल-देह-सोहिल्लो । वर-कई-कुसुम-करो, भत्ति - जुदो एदि बम्हिदो ।।८।। अर्थ - चन्द्र सदश धवल हंसपर आरूढ़, निर्मल शरीरसे सुशोभित और भक्तिसे युक्त ब्रह्मन्द्र उत्तम केतकी पुष्पको हाथ में लेकर आता है ॥ ८८ ।। कोंच-विहंगारूढो, घर-चामर-विविह-छत्त-सोहंतो । पष्फुल्ल कमल-हस्यो, एदि हु बम्हुत्तरियो वि ॥८६॥ मर्थ-क्रोंच पक्षीपर आरूढ़, उत्तम चंवर एवं विविध छत्रसे सुशोभित और खिला हुआ कमल हाथमें लेकर ब्रह्मोत्तर इन्द्र भी यहाँ आता है ।। ८९ ।। नोट-ऐसा ज्ञात होता है कि शायद यहाँ लांतव और कापिष्ठ इन्द्रकी भक्तिको प्रदर्शित करनेवाली दो गाथाएं छूट गई हैं। वर • चक्कवायरूढो, कुंडल-केयूर-पहुवि-विप्पंतो । सयवंती-कुसुम-करो, सुक्किदो भत्ति भरिद-मरणो ॥१०॥ अर्म-उत्तम चक्रवाकपर प्रारूढ़ कुण्डल और केयूर यादि प्राभरणोंसे देदीप्यमान एवं भक्तिसे पूर्ण मन-वाला शुकेन्द्र सेवन्ती पुष्प हाथमें लिये हुए यहाँ आता है ॥ ९ ॥ कीर - विहंगारूढो, महसुक्किदो वि एधि भत्तीए । विषय-विभूदि-विमूसिव-देहो वर-विविह-कुसुम-दाम करो॥६॥ अर्थ-तोता पक्षीपर चढ़कर, दिव्य विभूतिसे विभूषित शरीरको धारण करनेवाला तथा उत्तम एवं विविध प्रकारके फूलोंकी माला हाथ में लिये हुए महाशुक्रन्द्र भी भक्ति वश यहाँ प्राता जीलुप्पल-कुसुम-करो, कोइल-वाहण-विमारणमारूढो । बर - रयण - भूसिदंगो, 'सदरिदो एदि भत्तीए ।।१२।। 1. . ब. क. ज. सदारिदो।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy