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________________ गाथा : ४६-५२ पंचमी महाहियारो शेष द्वीप समुद्रोंके अधिपति देवोंका निर्देश सेसाणं दीवाणं, वारि-थिहोणं' च अहिवई देवा । जे केइ तारा णामं, सुबएसो संपहि पणिट्ठी ||४६ || अर्थ- शेष द्वीप समुद्रोंके जो कोई भी अधिपति देव हैं, उनके नामोंका उपदेश इस समय नष्ट हो गया है ।। ४८ ।। उत्तर-दक्षिण अधिपति देवोंका निर्देश पढम-पवणिद- देवा, दक्खिरण - भागम्भि दीव उवहीणं । चरिमुच्चारिद देवा, चेट्ठते उत्तरे भाए ॥४६॥ है ।। ५२ ।। अर्थ -- इन देवों (युगलों) में से पहले कहे हुए देव द्वीप - समुद्रोंक दक्षिणभाग में तथा अन्तमें कहे हुए देव उत्तरभागमें स्थित हैं ।। ४९ ।। - जिय-जिय-दोउवहीगं, णिय-जिय-तल-सट्ठिबेसु राय रेसु ं । बहुविह परिवार जुदा, कीडते बहु बिरगोदेण ॥५०॥ - - - अर्थ – ये देव प्रपने-अपने द्वीप समुद्रोंमें स्थित अपने - अपने नगर-तलोंमें बहुत प्रकारके परिवारसे युक्त होकर बहुत विनोदपूर्वक क्रीड़ा करते हैं ।। ५० ।। उपर्युक्त देवोंकी आयु एवं उत्सेधादिका वर्णन - एकक - पलियोमाऊ, पत्तेक्कं दस-अणूणि उत्तुंगा । भूजंते विविह सुहं, समचउरस्संग - संठाणा ॥ ५१ ॥ - [ १५. १. द. ब. क. ज. शिद्दि च । समचतुरस्रसंस्थान से युक्त होते हुए अनेक प्रकारके सुख भोगते हैं || ५१ || नन्दीश्वरद्वीपकी अवस्थिति एवं व्यास - इनमें से प्रत्येककी आयु एक पल्योपम है एवं ऊँचाई दस धनुष प्रमाण है। ये सब जंबू- दीवाहितो, प्रमओ होदि भुवरण- विक्खाबो | गंदीस त्ति दी श्रो, गंदीसर - जलहि परिखितो ।। ५२ ।। - भुवन - विख्यात एवं नन्दीश्वर - समुद्रसे वेष्टित जम्बूद्वीपसे आठवाँ द्वीप 'नन्दीश्वर'
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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