SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलोयपण्ण ती [ गाथा : ५३-५४ एक्क-सया तेसठ्ठी, कोडीओ जोयणाणि लक्खाणि । धुलसीदो तहीवे, बिक्खंभो चक्कवालेणं ॥५३॥ ५६३८४००००० अर्थ-उम द्वीपका मण्डलाकार बिस्तार एक सौ तिरेसठ करोड़ चौरासी लाख ( १६३८४००००० ) योजन प्रमाण है ।। ५३ ।। विशेषार्थ-इष्ट गच्छके प्रमाण मेंसे एक कम करके जो प्राप्त हो उतनी बार दो-दोका परस्पर गुणाकर लब्ध्रको एक लाखसे गुरिणत करनेपर वलय-व्यास प्राप्त होता है । जैसे—यहाँ द्वीप-समुद्रोंकी सम्मिलित गणनासे १५ वो नन्दीश्वरद्वीप इष्ट है । उपयुक्त करणसूत्रानुसार इसमेंसे १ घटाकर जो (१५-१-१४) शेष बचे उतनी (१४) वार दो का संवर्गन कर लब्धमें एक लाख का गुणा करना चाहिए । यथा २१४४ १०००००=१६३८४००००० योजन नन्दीश्वरद्वीपका विस्तार है । नन्दीश्वरद्वीपफी बाह्य-सूचीका प्रमाण पणवण्णाहिय छस्सय, कोडोयो जोयणाणि तेचीसा । लक्खाणि तस्स बाहिर • सूचीए होदि परिमाणं ॥५४।। ६५५३३०००००। अर्थ--उस नन्दीश्वरद्वीपकी बाह्य-सूचीका प्रमाण छहसौ पचपन करोड़ तैतीस लाख (६५५३३००००० ) योजन है ।। ५४ ।। विशेषार्थ -- इसी अधिकारको गाथा ३४ के नियमानुसार नन्दीश्वर द्वीपको सूचियोंका प्रमाण इसप्रकार है नन्दीश्वरद्वीपकी अभ्यन्तर सूची = ( १६३८४००००० x २ )- ३ लाख = ३२७६५००००० योजन है। इसी द्वीपकी मध्यम सूची=( १६३८४०००००४३ ) -- ३ लाख-४९१४६००००० योजन प्रमाण है। इसी द्वीपकी बाह्य सूची ( १६३८४०००००४४)- ३ लाख = ६५५३३००००० योजन प्रमाण है।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy