SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 704
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : ८०-८२ ग्रन्थान्त मङ्गलाचरणपण मह जिणवर-वसहं, गणहर-वसहं तहेव गुणहर-वसहं । दुसह-परीसह वसहं, जदिवसहं धम्म-सुच-पाढए'-वसहं ॥५०॥ अर्थ-जिनवर वृषभको, गुणों में श्रेष्ठ गणधर वृषभ को तथा दुस्सह परीषहों को सहन करने वाले एवं धर्म-सूत्रके पाठकों में श्रेष्ठ यतिवृषभको नमस्कार करो ॥८०|| ग्रन्धका प्रमाण एवं नाम आदिचण्णिसहवं अट्ट, करपवम • पमाण - किंजतं । अढ - सहस्स - पमाणं, तिलोयपण्णत्ति - णामाये ॥१॥ मगप्पभावण?', पवयण-भत्ति-प्पचोदिदेण मया । भणिवं गंथ - पवर, सोहंतु बहुस्सुदाइरिया ॥२॥ एकमाइरिय-परंपरा-गय-तिलोयपणतीए सिद्धलोय-सरुव णिरूवण-पण्णत्ती गाम रणवमो महाहियारो समतो ॥६॥ प्रर्थ-पाठ ( हजार ) पद प्रमाण चूरिणस्वरूप के तुल्य आठ हजार श्लोक प्रमाण यह त्रिलोक-प्रज्ञप्ति नामक महान ग्रंथ मार्ग-प्रभावना एवं अष्ट-प्रवचन भक्ति से प्रेरित होकर मेरे द्वारा कहा गया है । बहुश्रुत आचार्य ( इसका ) शोधन करें ।।५१-५२॥ इसप्रकार प्राचार्य परम्परा से प्राप्त हुई त्रिलोक प्रज्ञप्ति में सिद्धलोक-स्वरूप-निरूपणप्रज्ञप्ति नामक नवौं महाधिकार समाप्त हुआ। -.. ... --- १, ६, ब. क. . पाढर ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy