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________________ २] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : ५-७ निमित्तभूत परिणाम', योनि', सुख-दुःख", गुणस्थान आदिका, सम्यक्त्व-ग्रहणके कारण, मति-आगति", अल्पबहुत्व'५ और अवगाहना, इसप्रकार तिथंचोंकी प्रज्ञप्तिमें ये सोलह अधिकार हैं ।। २-४ ।। स्थावर-लोक का लक्षण एवं प्रमाण जा जीव-पोग्गलाणं, 'धम्माधम्म-प्पबंध-प्रायासे । होंति हु गदागदारिण, ताव हो थायरो लोगो ॥५॥ : - थायरलोयं गदं ॥१॥ प्रयं-धर्म एवं अधर्म द्रव्यसे सम्बन्धित जितने आकाश में जीव और पुदगलोंका आवागमन रहता है, उतना { = अर्थात् ३४३ घन राजू प्रमाण तीन लोक ) स्थावर लोक है ॥ ५ ॥ स्थावर-लोकका कथन समाप्त हुआ ॥ १॥ तिर्यग्लोकका प्रमाण मंदरगिरि-मूलादो, इगि-लपखं जोयणाणि बहलाम्म । रज्जअ पवर-खेत्ते, चे?दि तिरिय-तस-लोनो ॥६॥ sta'...... ATTA तस-लोय-परूवणा गदा ॥२॥ प्रर्य-मन्दरपर्वतके मूलसे एक लाख ( १००००० ) योजन बाल्य ( ऊंचाई ) रूप राजूप्रतर अर्थात् एक राजू लम्बे-चौड़े क्षेत्र में तिर्यक्-असलोक स्थित है ।। ६ ।। 11 त्रस-लोक प्ररूपणा समाप्त हुई ॥२॥ द्वीपों एवं सागरोंकी संख्या पणुवीस-कोडकोडो-पमाण-उद्धार-पल्ल-रोम-समा । वीओवहीण संखा, तस्सद्ध दीव-जलणिही कमसो ॥७॥ संखा समत्ता ॥३॥ १. ब. धम्मबहदुक्सगुण पलुदी। २. द. ब. चित्तेदि हु।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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