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________________ जदिवसहाइरिय- विरहवा तिलोयपण्णत्ती पंचमो महाहियारो मङ्गलाचरण भय्व- कुमुदेवक- चंवं, चंदप्यह-जिणवरं हि पर्णामरण । भासेमि तिरिय- लोयं लवमेतं अप्प -सत्तीए ॥१॥ अर्थ - भव्यजनरूप कुमुदोंको विकसित करने के लिए अद्वितीय चन्द्रस्वरूप चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रको नमन करके मैं अपनी शक्तिके अनुसार तिर्यग्लोकका यत्किचित् ( लेशमात्र ) निरूपण करता हूँ ।। १ ।। तिर्यग्लोक - प्रज्ञप्ति में १६ अन्तराधिकारोंका निर्देश थावरलोय - पमाणं, मज्झम्मि य तस्स तिरिय-तस- लोप्रो । atatantr संखा, विष्णासो ग्राम संजुत्तं ॥२॥ गाणाविह खेत्तफलं आउग बंधण भावं, जोणी सुह तिरियाणं भेद संख आऊ य । - - - · - दुक्ख थोव · गदिरागबि सम्मत गहरा हेदू, बहुगयोगाहं । सोलसया अहियारा, पण्णसीए य तिरिया ||४|| - - गुण पहुदी ||३|| - अर्थ-स्थावर लोकका प्रमाण', उसके मध्यमें तिर्यक् त्रस - लोक द्वीप - समुद्रों की संख्या ", नाम सहित विन्यास, नानाप्रकारका क्षेत्रफल" तिर्यचोंके भेद, संख्या, प्रायु, आयुबन्धके १. ८. ब. क. जिल्वरे हि । २. द. ब. क. लोए ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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