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________________ गाथा - ११ ] पंचमो महाहियारो [ ३ श्रथं - पच्चीस कोड़ाकोड़ी उद्धार पत्योंके रोमोंके प्रमाण द्वीप एवं समुद्र दोनों की संख्या है । इसकी प्राधी क्रमशः द्वीपोंकी और श्राधी समुद्रोंकी संख्या है ।। ७ 11 नोट- किंतु देखें इसी अधिकार की २७ वीं गाथा | संख्या का कथन समाप्त हुआ ।। ३ ।। द्वीप समुद्रोंकी अवस्थिति सध्ये दीव-समुद्दा, संखादीवा हवंति समवट्टा | पढमोदीओ उयही चरिमो मज्झम्मि दोबुवही' ॥६॥ अर्थ- सब द्वीप समुद्र प्रसंख्यात हैं और समवृत्त ( गोल ) हैं । इनमें सबसे पहले द्वीप, सरी अन्त में समुद्र र मध्य में द्वीप समुद्र है ॥ ८ ॥ चित्तावणि बहु-मज्भ, रज्जू-परिमारण- दीह-विवखम्भे । चेट्ठति बीच उबही एक्केवकं वेढिकरण डु प्परिदो ॥६॥ अर्थ - चित्रा पृथिवीके ( ऊपर ) बहु मध्यभागमें एक राजू लम्बे-चौड़े क्षेत्र के भीतर एकएकको चारों श्रोरसे घेरे हुए द्वीप एवं समुद्र स्थित हैं ।। ९ ।। सन्धे व वाहिणीसा, चित्तखिदि खंडिदूरण चेट्ठति । वज्ज-खिदीए उर्वार, दीवा विहु उवरि वित्ताए ॥१०॥ अर्थ- सब समुद्र चित्रा पृथिवीको खण्डितकर वज्रापृथिवीके ऊपर और सब द्वीप चित्रापृथिवी के ऊपर स्थित हैं ।। १० ।। विशेषार्थ -- चित्रापृथिवीकी मोटाई १००० योजन है और सब समुद्र १००० योजन गहराई वाले हैं । अर्थात् समुद्रों का तल भाग चित्राको भेदकर वज्रा पृथिवी के ऊपर स्थित है । आदि - अन्तके द्वीप समुद्रों के नाम आदी जंबूदीओ, हवेदि दीवाण ताण सघलागं । अंते सयंभुरमणो णामेणं विस्सुवो दोश्रो ॥। ११॥ अर्थ — उन सब द्वीपोंके आादिमें जम्बूद्वीप और अन्तमें स्वयम्भूरमण नामसे प्रसिद्ध द्वीप है ।। ११ ।। १. ब. क. दौउबही २. द. ब. क. अ. विक्खंभो । ३. द. ब. क. ज. प्रदो ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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