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तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा : १४- १७
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धनुष होंगे? इसप्रकार राशिक करने पर ( है x ) धनुष प्राप्त हुए। जबकि धनुष का १ खण्ड होता है, तब ७८७५०० धनुषोंके कितने खण्ड होंगे ? इस त्रैराशिक से (८७५००×3) १३५०००० खण्ड प्राप्त हुए । य खण्ड व्यवहार धनुष से हैं. इनके प्रमाण धनुष और प्रमाण धनुषों के प्रमाण हाथ बनानेके लिए इन्हें (५०० x ४ = ) २००० से भाजित करनेपर (* =)
६७५ खण्ड प्राप्त हुए ।
जबकि ६७५ खण्डोंका १५७५ धनुष स्थान है, तब १ खण्डका कितना स्थान होगा ? इस राशिक से ( ' = ) हाथका सिद्धोंकी जघन्य अवगाहना का स्थान प्राप्त हुआ ।
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मूल संदृष्टिमें यही सब प्रमाण दर्शाया गया है ।
raneer सम्पादि-वि-जीवाश्रो । होंति प्रणंताणंता, 'एक्केणोगा हि खेत्त मज्झम्मि ।।१४।।
श्रमं - एक सिद्ध जीवसे श्रवगाहित क्षेत्र के भीतर जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम श्रवगाहनावाले अनन्तानन्त सिद्ध जीव होते हैं || १४ ||
पाठान्तर ।
माणुसलोय पमाणे, संधि-तणुवाद-उवरिमे भागे ।
सरिस सिरा सव्वाणं, हेडिम भागम्मि विसरिसा केई ।। १५ ।।
अर्थ- मनुष्यलोक प्रमाण स्थित तनुवालके उपरिम भाग में सब सिद्धोंके सिर सदृश होते । अधस्तन भाग में कोई विसदृश होते हैं ।। १५ ।।
जावद्धम्प द्दव्यं तावं गंतूण लोयसिहरम्मि ।
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ति सब सिद्धा, पुह ह गय सिस्थ- मूस - गम्भ-पिहा ।।१६।।
श्रोगाणा गवा ॥३॥
अर्थ - जहाँ तक धर्मद्रव्य है वहाँ तक जाकर लोक शिखरपर सब सिद्ध पृथक्-पृथक् मोमसे रहित मूलक (सांचे ) के अभ्यन्तर आकाश के सह स्थित हो जाते हैं ।। १६ ।।
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अवगाहनाका कथन समाप्त हुआ || ३ || सिद्धोंका सुख
रुम वा गिट्टियकज्जा णिच्चा गिरंजरला पिरुजा । निम्मल बोधा सिद्धा, निरवज्जा रिएक्कला सगाधारा ॥ १७॥
१. ५. ब. बा. ज ठ एवकेोगदि । २. द. ब. क. ज. द. गसिद्ध 1