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गाथा 1 १२-१३ ]
णवमो महाहियारो तणुवाद-पवण-बहले, दोहि गुणि णवेण भजिवम्मि |
जं लद्ध' सिद्धाणं, उपकस्सोगाहणं ठाणं ॥१२॥ २२५० । १५७५ । ५०० । १ । एदेण ते-रासि'-लद्ध।। १५७५ । ३५० ।
पाठान्तरम् । प्रथ-तनुवात पवनके बाल्यको दोसे गुणित कर नौ का भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना सिद्धोंकी उत्कृष्ट अवगाहनाका स्थान होता है ।।१२।।
विशेषार्थ-तनुवातवलयका बाइल्प १५७५ धनुष प्रमाणांगुलकी अपेक्षा है और सिद्धों को उत्कृष्ट-जघन्य अवगाहना व्यवहारांगुल अपेक्षा है । तनुवातवलय की मोटाईको ५०० से गुरिणत करने पर ( १५७५४५०० = ) ७८७५०० व्यवहार धनुष प्राप्त होते हैं। सिद्ध परमेष्ठी उत्कृष्टता से तनुवात के एक खण्ड में विराजमान हैं । गाबकि 27 } ३Eष शाखण्ड होता है, तब ७८७५०० धनुषों के कितने खण्ड होंगे? इसप्रकार राशिक करने पर ( ११५०°- )२२५० खण्ड हुए । ये २२५० खण्ड व्यवहार धनुष से हैं, इनके प्रमाण धनुष बनाने के लिये इन्हें ५०० से भाजित करने पर (३)-४३ या प्रमाण धनुष (खण्ड) प्राप्त होते हैं ।
जबकि २२५० अर्थात् खण्डों का १५७५ धनुष स्थान है तब १ खण्ड का कितना होगा ? इसप्रकार पुनः पैराशिक करने पर (pxq =) ३५० धनुषका सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना का स्थान प्राप्त हुआ । मूल संदृष्टि में यही सब प्रमाण दिया गया है।
पाठान्तर। तणवावस्स य बहले, छस्सय-पण्णत्तरीहि भजिवम्मि। जं ला सिखाणं, जहण्ण - प्रोगाहणं होवि ॥१३॥ १३५०००० । १५७५ ॥ २००० । १ । ते-रासिएण सिद्ध ।
पाठान्तरम् । मर्थ-तमुधात के बाहल्य में छह सौ पचहत्तर (६७५) का भाग देने पर जो लब्ध प्राप्त हो उतना सिद्धों की जघन्य अवगाहना का स्थान होता है ।।१३।।
विशेषार्थ-पा० १२ के विशेषार्थानुसार यहाँ भी ( १५७५ x ५००= ) ७८७५०० व्यवहार धनुष प्राप्त हुए । सिद्धोंकी जघन्य अवगाहना का माप हाथ से है और उनकी अवस्थितिके स्थानका माप धनुष है अतः जबकि ४ हाथका एक धनुष होता है तब (६x= ) हाथके कितने
१.
सेरासियं।