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तिलोय पण सी
१५७५ x ५०० ९०००००
- सनुवात के बाहत्य की देने पर जघन्य अवगाहनाका [ ( १५७५×५०० ) : १००००० होता है ॥ ८ ॥
संख्या को पाँच सौ रूपों से गुणा करके नौ लाख का भाग धनुष - ३३ हाथ ] प्रमाण
वीहत्तं बाल्लं, चरिम-भवे जस्स जारिसं ठाणं । ततो ति-भाग-हीणं ओगाहण सव्य - सिद्धाणं ॥ ६ ॥
[ गाथा । ६-११
पर्व-अन्तिम भने जिसका वैसा आकार, दीर्घता श्रीर बाहल्य हो उससे तृतीय भागसे कम सब सिद्धों की अवगाहना होती है ||६||
लोयविणिच्छ्रय-गंथे, लोयविभागम्मि सव्व-सिद्धाणं । श्रोगाहण - परिमाणं भणिवं किंचूण चरिम- बेह-समो ॥१०॥ पाठान्तरम् ।
अर्थ -- लोकविनिश्चय ग्रन्थ में तथा लोगविभाग में सब सिद्धोंकी अवगाहनाका प्रमाण कुछ कम चरम शरीरके सदृश कहा है ||१०||
पाठान्तर ।
पण्णा सुत्तर- तिसया, उक्करसोगाहणं हवे दंडं । तिय- भजिव-सत्त हत्था, जहण्ण श्रोगाहणं ताणं ॥ ११ ॥ ३५० । ह्र । ु ।
पाठान्तरम् ।
अर्थ- सिद्धोंकी उत्कृष्ट अवगाहना तीन सौ पचास ( ३५० ) धनुष और जघन्य अवगाह्ना तीनसे भाजित सात ( ) हाथ प्रमाण है ।। ११।।
पाठान्तर ।
विशेषार्थ - मोक्षगामी मनुष्यके अन्तिम शरीरको उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ धनुष और जघन्य अवगाहना या ३३ हाथ प्रमाण होती है । कोई आचार्य अन्तिम भव से भाग कम अर्थात् ( ५२५ ) ३५० धनुष उत्कृष्ट और ( ३ ) या २ हाथ प्रमाण जघन्य श्रवगाहना मानते हैं ।
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१. व. व. २००००० । १५७५ । ५०० । । है । २. व. ब. क. भमिदं ।
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