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________________ ६२० ] तिलोयपणती [ गाया : ४ प्रथं-आठवीं ( ईषत्प्राग्भार ) पृथ्वीके ऊपर सात हजार पचास धनुष जाकर सिद्धोंका आवास है ||३|| विशेषार्थ-अष्टम पृथ्वीसे ऊपर लोकके अन्तमें ४००० धनुष मोटा धनोदधिवातवलय, २००० धनुष मोटा घनवातवलय और १५७५ धनुष मोटा तनुवातवलय है । सिद्ध परमेष्ठी तनुवातवलयमें रहते हैं और इनकी उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ है । वातवलयों के प्रमाणमेंसे उत्कृष्ट अवगाहना घटा देने पर अष्टम पृथ्वीसे कितने योजन ऊपर जाकर सिद्ध स्थित हैं, यह प्रमाण प्राप्त हो जाता है । यथा ७०५० धनुष-( ४००० ५०+२००० ध०-१५७५ ध०)-५२५ धनुष । पणवो छप्पण-इगि-प्रद्ध-णह-चउ-सग-चउ-ख-चदुर-अड-कमसो। अट्ट - हिदा जोयणया, सिद्धाण णिवास - खिविमाणं ॥४॥ ८४०४७४०८१५६२५ णिवास-खेत्तं पदं ॥१॥ अर्थ-सिद्धोंके निवास क्षेत्रका प्रमाण अंक क्रमसे आठसे भाजित पांच, दो, छह, पांच, एक, आठ, शून्य, चार, सात, चार, शून्य, चार और पाठ इतने ( ८५४५४१८198२५ ) योजन है ।।४। विशेषार्थ-सिद्धोंके निवास क्षेत्रका व्यास मनुष्य लोक सदृश ४५ लाख योजन है और सिद्धप्रभुको उत्कृष्ट अवगाहना अर्थात् ऊंचाई ५२५ धनुष प्रमाण है । इसका घनफल इसप्रकार है सिद्धोंके निवास क्षेत्रकी परिधि= V४५ लाख२४१० = १४२३०२४९ योजन। सिद्धक्षेत्रका धनफल-- ( परिधि १४३५३४ }x(४५ लाख ध्यासका चतुर्थांश ) x (%8x- यो० ऊंचाई )। = ८४०४५४५३१४२५ घन योजन । या = १०५०५६२६११९५३६ घन योजन है। नोट-उपयुक्त प्रमाण घन योजनों में प्राप्त हुआ है किन्तु गाथामें केवल योजन कहे गये है । यह विचारणीय है। निवास क्षेत्रका कथन समाप्त हुआ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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