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तिलोयपण्णत्ती
णवमो महाहियारो
मंगलाचरण एवं प्रतिज्ञा
उम्मग्ग-संठियाणं भव्वाणं मोक्ख मग्ग - देसयरं ।
पणमिय संति- जिणेसं', वोच्छामो सिद्धलोष-पण्णत्ती ॥१॥
अर्थ - उन्मार्ग में स्थित भव्य जीवोंको मोक्षमार्गका उपदेश करनेवाले शान्ति जिनेन्द्र को नमस्कार करके सिद्धलोक- प्रज्ञप्ति कहता हूँ ॥ १ ॥
पाँच श्रन्तयाधिकारोंका निर्देश -
सिद्धाण निवास-खिदो, संखा ओगाहणाणि सोक्खाई ।
सिद्धत्त हेतु भावो, सिद्ध जगे पंच प्रहियारा ||२||
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अर्थ - सिद्धोंकी निवास-भूमि, संख्या, श्रवगाहना, सौख्य और सिद्धत्वके हेतु भूत भाव, सिद्धलोक प्रज्ञप्ति में ये पाँच अधिकार हैं ॥२॥
सिद्धोंका निवास क्षेत्र
अट्टम - खिवीए उवर, पण्णासम्भहिय सतय सहस्सा | दंडाणि गंतुणं, सिद्धाणं
होवि
आवासो ||३॥
१. द. ब. क. ज. ठ. जिणं । २. द. ब. क. ज. उ. जुगे ।