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गाथा : ७२३ - ७२६ ]
श्रमो महाहियारो
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अर्थ- सौधर्म इन्द्र नियमसे जम्बूद्वीपको ( उठाकर ) फेंक सकता है। इसप्रकार कोई आचार्य उसके शक्ति स्वभावका निरूपण करते हैं ||७२२||
शक्तिका कथन समाप्त हुआ ।
चारों प्रकारके देवोंकी योनि प्ररूपणा -
भावण - बेंतर जोइसिय- कप्पवासोण'- जणणमुकवादे । सोहं प्रच्चित्तं, संउदया होति सामन्णे ||७२३॥
एवाण चज - विहाणं सुरराण सन्दण होंति जोणीश्रो । च-लक्खा हु विसेसे, इंदिय-कल्लाव श्रीवाला ( ? ) ||७२४ ।।
जोणी समसा ॥
अर्थ - भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासियों के उपपाद जन्म में शीतोष्ण, अचित्त और संवृत योनि होती है । इन चारों प्रकारके सब देवोंके सामान्यरूपसे ये योनियाँ हैं। विशेष रूप से चार लाख योनियाँ होती हैं ।।७२३-७२४ ।।
योनियोंका कथन समाप्त हुआ ।
स्वर्ग सुख के भोक्ता -
सम्मदंसण सुद्विमुज्जलयरं संसार निण्णासणं । सम्मण्णाण मणंत दुक्ख हरणं धारति जे सततं ॥ ७२५॥
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जिग्वार्हति विसिद्ध-सोल-सहिदा, जे सम्मचारितयं ।
ते सग्गे सुविचिचपुण्ण-जणिदे, भूजंसि सोक्लामयं ॥ ७२६ ॥
१. व. व. कप्पवासीणणसुववादे ।
पाठान्तर ।
अर्थ- जो अतिशय उज्ज्वल एवं संसारको नष्ट करनेवाली सम्यग्दर्शनकी शुद्धि तथा अनन्त दुःखको हरने वाले सम्यग्ज्ञानको निरन्तर धारण करते हैं और जो विशिष्ट शील-परायण होकर सम्यक्चारित्रका निर्वाह करते हैं, अद्भुत पुण्यसे उत्पन्न हुए वे स्वर्ग में सौस्यामृत भोगते हैं ।।७२५ - ७२६ ।।