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________________ ६१६ ] तिलोपाती हेट्टिम - मज्झिम- उयरिम-गेयेज्जेस अणुद्दिसादि-दुगे । पल्लासंखेज्जंसो, सुराण संखाए जह जग्गं ॥७१८ ।। - | श्रर्थ - अधस्तन ग्रैवेयक, मध्य ग्रैवेयक, उपरिम प्रवेयक और अनुदिश-विक ( अनुदिवाअनुत्तर) में देवों की संख्या यथायोग्य पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ||७१८ ॥ वरि विसेसो सन्टु सिद्धि- खामम्मि होवि-संखेज्जो । णिद्दिट्ठा श्रीरागेहि ॥७१६ ॥ देवाण परिसंखा, संखा गया || प अर्थ-विशेष यह है कि सर्वार्थसिद्धि नामक इन्द्रक में संख्यात देव हैं। इसप्रकार वीतरागदेव ने देवों की संख्या निर्दिष्ट की है । ।' संख्या का कथन समाप्त हुआ ।।७१९।। वैमानिक देवों की शक्तिका दिग्दर्शन- एक्क पलिबोबभाऊ, उप्पाडेदु धराए छपखंडे | तग्गद-नर- तिरिय-जणे, मारेदु पोसिदु सक्को ।।७२०|| तरगद - अर्थ- - एक पल्योपम प्रमाण आयुवाला देव पृथिवी के छह खण्डों को उखाड़ने में प्रय उनम स्थित मनुष्य और तिर्यञ्चों को मारने अथवा पोषण करने में समर्थ है ||७२० ॥ - [ गाथा : ७१८-७२२ उहि उवमाण- जीबी, पल्लट्टे बुं च 'जंबुबीथं हि । खर तिरियाणं, मारेवु ́ पोसिदु सबको ॥७२१॥ १. ८. ब. क.अ. रु. २. ८. ब. क. ज. द. सोहम्मदा अर्थ – सागरोपम प्रमाण काल पर्यन्त जीवित रहनेवाला देव जम्बूद्वीपको भी पलटते में और उसमें स्थित मनुष्य श्रोर तिर्यञ्चों को मारने अथवा पोषनेमें समर्थ है ||७२१|| सोहम्मद जियमा, अंबूधीवं समुक्खियदि एवं । केई आइरिया इय, सत्ति सहावं परूवंति ॥ ७२२ ।। पाठान्तरम् । सती गया । २. . . क. अ. ठ. बीबम्मि ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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