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________________ गाथा : ७१४-७१७ ] अट्ठमो महाहियारो घमानिक देवोंका पृथक्-पृथक् प्रमाण-- सोहम्मोसाण - दुगे, विदंगुल-तदिय-मूल-हद-सेठी । बिदिय-'जुगलम्मि सेढी, 'एक्करसम-वग्गमूल-हिया ॥७१४॥ अर्थ -सौधर्म-ईशान युगलमें देवोंको संख्या घनाङ्ग लके तृतीय वर्ग मूलसे गुणित श्रेणी (श्रेणी - घ० अं० का ३ बर्गमूल ) प्रमाण और द्वितीय पुगलमें अपने ग्यारहवें वर्गमूलसे भाजित श्रेणी ( श्रेणी श्रेणीका ११ वा वर्गमूल ) प्रमाण है ॥७१४।। बम्हम्मि होदि सेढी, सेढी-रणव-घग्गमूल-अवहरिदा । लंतयकप्पे सेढी, सेढी - सग - वगमूल - हिवा ॥७१५॥ अर्थ-ब्रह्मकरूप में देवों की संख्या श्रेणीके नौवें वर्गमूलसे भाजित श्रेणी (श्रेणी श्रेणो का ९ वा वर्गमूल ) प्रमाण और लान्तवकल्पमें श्रेणीके सातवें वर्गमूलसे भाजित श्रेणो (श्रेणी श्रेणीका ७ वा वर्गमूल ) प्रमाण है ।।७१५।। महसुक्कस्मिय सेढी, सेढी-पण-वामूल-भजिदम्वा । सेढी सहस्सयारे, सेदो - चउ - वग्गमूल हिदा ।।७१६॥ अर्थ-महाशुक्ल कल्पमें देवों की संख्या श्रेणी के पांचवें वर्गमूलसे भाजित श्रेपो ( श्रे श्रेणीका ५ वा वर्गमूल ) प्रमाण और सहस्रार कल्पमें श्रेणीके चतुर्थ वर्गमूलसे भाजित श्रेणी प्रमाण है ।।७१६॥ अवसेस - कप्प - जुगले, पल्लासंखेज्जभागमेक्केयके । देवाणं संखादो, संखेम्जगुणा हवंति देवोत्रो ॥७१७॥ अर्थ-अवशेष दो कल्प युगलों में से एक-एक में देवों का प्रमाण पल्पके असंख्यातवें भाग मात्र है । देवों की संख्या से देवियों संखपातगुरगी हैं ।।७१७।। - --.. . - -... - .. ..- - १. द. म. जुलम्मि । २. ब. एक्क रसग, द. क. ज. ठ. एनकरसबाग । ३.द.व.क. ज.. .
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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