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तिलोयपत्तों
[ गाथा : ७१३ एक प्रदेश पुनः घटा देना । पुनः लब्धराशि में ध्र बहार का भाग देना और प्रदेश पुज में से एक प्रदेश और घटा देना। इसप्रकार अवधिज्ञान के विषयभूत क्षेत्र के जितने प्रदेश हैं उतनी बार अवधिज्ञानावरण कर्म के परमाणु पुञ्ज भजनफल स्वरूप लब्धराशि में भाग देने के बाद अन्त में जो लब्ध राशि प्राप्त हो उतने परमाणु पञ्ज स्वरूप पुद्गल स्कन्ध को वैमानिक देव अपने अवधिनेत्र से जानते हैं । यथा--
मानलो- अवधिक्षेत्र के प्रदेश १० हैं और विनसोपचय रहित अवधिज्ञानावरण कर्म स्कन्ध के परमाणु १००००००००००० हैं तथा ध्रव भागहार का प्रमाण है अत:क्षेत्र-१० प्रदेश
अवधिज्ञानावरणका द्रव्य
३-१-२
१०००००००००००४-२००००००००००। ९-१-5
२००००००००००४-४०००००००००। ५-१७
४०००००००००४-८००००००००।
८००००००००४६=१६०००००००। ६-१५
१६०००००००x१=३२००००००। ५-१४
३२००००००४६४०००००। ४--१३
६४०००००४१२८०००० ।
१२८००००४-२५६०००। २-१-१
२५६००० x ३=५१२०० । १-१०
५१२००४१-१०२४० । पुद्गल स्कन्ध को वैमानिक देव अपने अवधिनेत्र से जानते हैं ।
होति असंखेज्जाओ, सोहम्म-दुगस्स वास-कोडीयो। पल्लस्सासंखेज्जो, भागो सेसाण बह - जोग्गं ॥७१३॥
एवं प्रोहि-गाणं गवं ॥ अर्थ-कालकी अपेक्षा सौधर्मयुगलके देवों का अबधि-विषय प्रसंख्यात वर्ष करोड़ और शेष देवों का यथायोग्य पल्यके असंख्यातमाग प्रमाण है ।।७१३॥
इसप्रकार अवधिशान का कथन समाप्त हुप्रा॥