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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ७०३-७०७ वैमानिक देव भरकर कहाँ-कहाँ जन्म लेते हैं - आईसाणं देवा, जणणा एइंदिएसु भजिवन्वा ।
उरि सहस्सारंतं, ते भज्जा' सण्णि-तिरिय-मणुवत्ते ॥७०३॥
अर्थ - ईशान कल्प पर्यन्त के देवों का जन्म एकेन्द्रियों में विकल्पनीय है। इससे ऊपर सहस्रार कल्प पर्यन्त के सब देव विकल्प से संज्ञी तिर्यञ्च या मनुष्य होते हैं ।।७०३॥
तत्तो उरिम-देवा, सम्वे सुक्काभिधाण लेस्साए ।
उप्पज्जति मणुस्से, रणस्थि तिरिक्खेस उदवादो ॥७०४॥
अर्थ-इससे ऊपर के सब देव शुक्ल लेश्या के साथ मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, इनकी उत्पत्ति तिर्यञ्चों में नहीं है ।।७०४॥
देवनादोदो चत्ता, कम्मक्खेत्तम्मि सण्णि-पज्जते ।
गब्भ-भवे जायंते, ण भोगभूमीण पर-तिरिए ॥७०५।। अर्थ-देवगति से च्युत होकर वे देव कर्मभूमि में संज्ञी, पर्याप्त एवं गर्भज होते हैं, भोगभूमियों के मनुष्य और तियंञ्चों में नहीं होते हैं ।।७०५।।
सोहम्मादी देवा, भज्जा हु सलाग-पुरिस रिणवहेसु।
हिस्सेयस गमणेसु, सध्ये बि अणंतरे जम्मे ॥७०६॥
प्रथ-सब सौधर्मादिक देव अगले जन्म में शलाका-पुरुषों के समूह में और मुक्ति-गमन के विषय में विकल्पनीय हैं ।१७०६।।
गरि विसेसो सम्वदसिद्धि-ठाणदो विच्चुदा देवा । भज्जा सलाग-पुरिसा, णिव्वाणं यांति णियमेणं ॥७०७।।
एवं प्रागमस्य-परुवरणा समसा ।। अर्थ-विशेष यह है कि सर्वार्थ सिद्धि से च्युत हुए देव शलाकापुरुषरूप से विकल्पनीय हैं, किन्तु वे नियम से निर्वाण प्राप्त करते हैं ।।७०७॥ इसप्रकार प्रागमन-प्ररूपणा समाप्त हुई ।।
- .- ..-- - - १. ६.ब. भम्बा, क. ज, 8. सवा। २. द. ब. क. विच्चुयो।