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________________ गाथा । ६३६-६३७ ] मो महाहियारो [ પૂ૨૭ अर्थ - अवरणवर द्वीप की बाह्य जगती तथा तमस्काय के अन्तराल से अभ्यन्तर राजी के तमस्कायों का अन्तराल - प्रमाणु नियम से संख्यात मुरण है । इस प्रभारण से अभ्यन्तर राजी संख्यातगुणी है । श्रभ्यन्तर राजी से अधिक तमस्काय है । अभ्यन्तर राजो से बाह्य राजी कुछ कम है । बाह्य-राजियों से दोनों राजियों का जो अन्तराल है यह अधिक है । इस प्रकार चारों दिशाओं में भी अल्पबहुत्व है ||६३२-६३५।। एवम्मि तमिस्सेदे, विहरते अप्प-रिद्धिया देवा । दिम्मूढा वच्वंते, माहत्येणं' महद्धिय सुराणं ॥ ६३६ ॥ - अथ - इस अन्धकार में बिहार करते हुए जो श्रपद्धिक देव दिग्भ्रान्त हो जाते हैं वे महद्धिक देवों के माहात्म्य से निकल पाते हैं || ६३६ || विशेषार्थ - काजल सदृश यह अन्धकार पुद्गल की कृष्ण वर्ण की पर्याय है । जैसे सुमेरु, कुलाचल एवं सूर्य-चन्द्र के बिम्ब आदि पुद्गल को पर्यायें अनादि निधन हैं, उसी प्रकार यह अन्धकार का पिण्ड भी अनादि निधन है । जैसे उष्णता शीत-स्पर्शकी नाशक है परन्तु शीत पदार्थ भी उष्णता को समूल नष्ट कर सकता है । वैसे ही कतिपय अन्धकार तो प्रकाशक पदार्थ से नष्ट हो जाते हैं किन्तु कुछ अन्धकार ऐसे हैं जिन्हें प्रकाशक पदार्थं ठीक उसी रंग रूप में प्रकाशित तो कर देते हैं किन्तु नष्ट नहीं कर पाते । जैसे मशाल के ऊपर निकल रहे काले धुएं को मशाल की ज्योति नष्ट नहीं कर पाती अपितु उसे दिखाती ही है । उसी प्रकार श्ररुणसमुद्र स्थित सूर्य-चन्द्र काली स्याही को धूल सदृश फेंक रहे इस गाढ़ अन्धकार का बालाग्र भी खण्डित नहीं कर सकते अपितु काले रंग की दीवाल या काले वस्त्र सदृश मात्र उसे दिखा रहे हैं || ( तत्स्वार्थ श्लोकवार्तिकालंकार पंचम खण्ड से ) इस घोर अन्धकार में विहार करते हुए अल्पदिक देव जब दिग्भ्रान्त हो जाते हैं तब वे महक देवों की सहायता से ही निकल पाते हैं । लोकान्तिक देवोंका निरूपण -- राजीणं विरुवाले, संखेज्जा होंति बहुविह· विमाणा । एदेसु सुरा जादा, खाया लोयंतिया रणाम ।।६३७।। अर्थ-राजियों के अन्तराल में संख्यात बहुत प्रकारके विमान हैं। इनमें जो देव उत्पन्न होते हैं वे लौकान्तिक नाम से विख्यात हैं ||६३७॥ १. य. ब. के. ज. य. वाहणं । २. ६. ब. क. ज. ट. बावा 1
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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