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________________ ५८६ ] तिलोय पण्णत्ती कंत्रण-पासाणेसु सुह-बुक्सु पि मित-ग्रहिसु' । 3 समणा समाण-भावा, बंधति महद्धिग- सुराउं ||५७३ ॥ w अर्थ -- स्वर्ण- पाषाण, सुख-दुःख और मित्र शत्रु में समता भाव रखने वाले श्रमण महाऋद्धिधारक देवों की आयु बांधते हैं ।। ५७३|| देहेसु णिरवेवला, णिग्भर- बेरग्ग-भाष संजुत्ता | बंधंति महद्धिग-सुराउं ॥ ५७४ ।। रागादि-बोस- रहिवा, अर्थ -- शरीर से निरपेक्ष, अत्यन्त वैराग्य भावों से युक्त और रागादि दोषों से रहित ( श्रमण ) महा ऋद्धिधारक देवों की आयु बांधते हैं ।।५७४ ।। उत्तर - मूल- गुरसु, समिवि सुदे सम्झाण- जांगे । निवचं पमाव रहिदा, बंधंति महद्धिग- सुराउ' ।। ५७५।। [ गाथा : ५७३-५७८ अ - जो श्रमण भूल और उत्तर गुणों में ( पाच ) समितियों में, महाव्रतों में धर्म एवं शुक्लध्यान में तथा योग आदि की साधना में सदैव प्रमाद रहित वर्तन करते हैं वे महा ऋद्धिधारक देवों की प्रा बांधते हैं ।। ५७५ ।। वर-म- घर - पत्ते, श्रीसह प्राहारमभय- विष्णाणं । बाणा' - 'बंधंति देवा ॥५७६ ।। अर्थ- जो उत्तम, मध्यम और जघन्य पात्रों को श्रौषधि, आहार, अभय और ज्ञान दान [ देते हैं वे मध्यम ऋद्धिधारक ] देवों की आयु बांधते हैं ।। ५७६ ।। लज्जा मज्जादाहिं, मक्किम भावेहि संजुदा केई । उवसम-पहुवि समग्गा, बन्धंसे मज्झिमद्धिक-सुराउं ॥ ५७७॥ - कई मध्यम ऋद्धि-धारक देवों की आयु बांधते हैं ।। ५७७ ॥ अर्थ – लज्जा और मर्यादा रूप मध्यम भावों से युक्त तथा उपशम प्रभृति भावों से संयुक्त पचलिद सारणाणे, चारिते बहु-किलिङ
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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