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तिलोयपण्यत्ती
[गाया ! ५६५-५६७ अर्थ-पहले दूसरे युगल, ब्रह्मादि चार और प्रानतादि चार, इन बारह कल्पोंमें, अधस्तन, मध्यम, उपरिम घेवेषकों में तथा शेष ( अनुदिश और अनुत्तर ) विमानों में देवों के अपने-अपने भोजन के काल का जो प्रमाण कहा गया है उसमें उतने प्रमाण मुहूर्त में श्वासोच्छवास का संचार होता है ।।५६३-५६४॥
देवोंके शरीरका उत्सेधदेवाणं उच्छेहो, हत्था - सत्त - छ - पंच - चत्तारि । कमसो हवेदि तत्तो, पसेक्कं हत्थ - दल - हीणा ॥५६॥
७।६।५।४।३।३। ।२।३।१ अर्ष-देवोंके शरीरका उत्सेध क्रमशः सात, छह, पांच और चार हाथ प्रमाण है, इसके आगे प्रत्येक स्थान पर अधं-अर्ध हाप होन होता गया है ।।५६५।।
विशेषार्थ-देवों के शरीर की ऊंचाई सौधर्म कल्प में ७ हाथ, ईशान कल्पमें ६ हाथ, सनत्कुमार में ५ हाथ, माहेन्द्र कल्पमें ४ हाथ, ब्रह्म कल्प से सहस्रार करूप पर्यन्त ३३ हाथ, पानतादि चार करूपोंमें ३ हाथ, अधोवेयकमें २३ हाथ, मध्यम में २ हाथ, उपरिममें १६ हाथ और अनुदिश एवं अनुत्तर विमानों के दयों के शरीर की ऊंचाई एक हाथ प्रमाण है ।।
बुस दुस चउसु दुस सेसे सत्तच्छ - पंच - चत्तारि । ततो हत्य - दलेणं, हीणा सेसेस पुष्वं व ॥५६६॥
७।६।५।४। ।३। ।२।३।१।
पाठान्तरम् ।
अर्थ-देवोंके शरीरकी ऊंचाई दो अर्थात् सौधर्मशानमें ७ हाथ, दो ( सानत्कुमार-माहेन्द्र) में ६ हाथ, चार ( ब्रह्मादि चार ) में ५ हाथ और दो ( शुभ-महाशुक्र ) में ४ हाथ है। शेष कल्पोंमें अर्ध-अर्ध हस्त प्रमाण हीन होता गया है । अर्थात् शतार-सहस्रारमें ३३ हाथ और पानतादि चारम ३ हाथ प्रमाण है । शेष ( कल्पातीत विमानों ) में पूर्व के सदृश अर्थात् अधोग्रेवेयकमें २२ हाथ, मध्यम
० में २ हाथ और उपरिम ३० में १३ है । शेष विमानोंमें पूर्ववत् अर्थात् अनुदिश और अनुत्तर विमानोंमें शरीरका उत्सेध एक हाथ प्रमाण है ।।५६६॥ .
पाठान्तर । एवे सहाव • जादा, देहुच्छेहो हुवंति देवाणं । विकिरियाहि ताणं, विचित - मेवा विराजंति ।।५६७॥
उच्छहो गदो ॥१२॥