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गाथा : ५४४ ] अट्टमो महाहियारो
[ ५७७ सहस्सारनो ति एक्को पत्थलो सदर-सहस्सार-कप्पेसु । तत्य आउयस्स संविट्ठी' -१८। ।
अर्थ-शसार-सहनार कल्पमें सहस्रार नामक एक ही पटल है। उस में आयुका प्रमाण १८३ सा० है ।।
प्राणव-पाणद-कप्पेसु तिण्णि पत्यला । तेसुमाउस्स पुवुत्त-कमेण प्राणिव-संदिट्ठी १६ । १६ ।। २० ।
अर्थ-आनत-प्रागत कल्पमें तीन पटल हैं । उनमें पूर्वोक्त विधिसे निकाला हुआ नायका प्रमाण इसप्रकार है--आनतमे १६ सा०, प्राणतमें १९३ सा० और पुष्पकमें २० सा० ।
आरण-अच्चुव-कप्पे तिणि पस्थला । एवेसुमाउआणं एस संदिट्ठी । २० ।। २१ । । २२ ।
अर्थ-आरण-अच्युत कल्पमें तीन पटल हैं। इनमें आयु प्रमाणको संदृष्टि यह है - शासकमें २०३३ सा०, आरएमें २१ सा० और अच्युतमें २२ सागर ।।
एतो उवरि सुदंसरणी अमोघो सुप्पबुद्धो जसोहरो सुभद्दो सुविसालो समणसो सोमणसो पोदिकरो त्ति एदे व पत्थला गेवेज्जेसु । एवेसुमाउआणं वढि-हाणी पत्थि । पावेक्कमेक-पत्थलस्स पाणियादो । तेसिमाउ -संविट्ठी एसा-२३ । २४ । २५ । २६ । २७ । २८ । २६ । ३० । ३१ ।
अर्थ-उससे ऊपर सुदर्शन, अमोघ, सुप्रबुद्ध, यशोधर, सुभद्र, सुविशाल, सुमनस, सौमनस और प्रीतिङ्कर इसप्रकार ये नौ पटल अवेयकों में हैं। इनमें आयुकी वृद्धि-हानि नहीं है, क्योंकि प्रत्येकमें एक-एक पटलको प्रधानता है। उनमें आयको संदृष्टि यह है
सुदर्शन २३ सा०, अ० २४ सा०, सु० २५ सा०, यशो० २६ सा०, सुभद्र २७ सा०, सुवि: २८ सा०, सुमनस २९ सा०, सौ. ३० सा. और प्रीतिङ्कर में ३१ सागर है।
णवाणुद्दिसेसु प्राइच्यो शाम एक्को चेव पस्थलो। तम्हि आउयं एत्तियं होदि ३२ ।
१. ब. पत्थला, द. क, म. 3. पत्थना आउ संदिट्टो । २. द, ब, क, ज. ठ. तेसिमाउमाउ ।