________________
५७६ ]
तिलोय पण्णत्ती.
[ गाथा : ५४४
अर्थ- सनत्कुमार माहेन्द्र युगल में सात पटल हैं । इनमें श्रायु-प्रमाणको प्राप्त करने के लिए मुख अढ़ाई सागरोपम भूमि साढ़े सात सागरोपम और उत्सेध सात है ।
( भूमि १५ – मुख ) ÷७
सा० ( भूमि – मुख ) ÷ ७ उत्सेध |
-
वृद्धि हानिका प्रमाण
उनकी संदृष्टि इसप्रकार है
अञ्जन ३६४ सागर = 1⁄2 सा० + गरुड़ ५.५४ सा०, लांगल ६६४ सा० बलभद्र ६१ और चक्र पटल ७३ सागर है ।
सा० इसीप्रकार वनमाल ३३३ सागर, नाग ४५४ सा०,
बम्ह-बम्हत्तर- कप्पे चत्तारि पत्थला । एबेसिमाउ पमाणिज्जमाणे ' मुहं अबसागरो माहिय-सस- सागरोषमाणि भूमी अद्ध-सागरोवमाहिय- दस सागरोषमाणि । एंदेंसिमाज आरण संदिट्ठी ।
८ ।
१९।९।१।१०३ ।
अर्थ-ब्रह्म-न्नह्मोत्तर करूपमें चार पटल है। इनका आयु प्रमाण प्राप्त करने हेतु मुख साढ़ेसात (७३) सागरोपम भूमि साढ़दस (१०३ ) सागरोपम ( और उत्सेध चार ) है । [ इनमें वृद्धि - हानिका प्रमाण है सा० (१०३-७३) ४ उत्सेध ] इनमें श्रायु प्रमाणकी संदृष्टि इसप्रकार है
अरिष्ट ८ सा०=७३ + सागर । इसीप्रकार सुरसमिति सा०, ब्रह्म ९४ सा० और ब्रह्मोस की १० सागर है ।।
लव- कापि दोणि पत्यला । तेसिमाउयाण संविट्ठी एसा ।
१२ । १ । १४ । ३ ।
अर्थ - लान्सव- कापिष्ठमें दो पटल हैं। उनमें आयु प्रमाणकी संदृष्टि - ब्रह्महृदय में १२३ सा० और लान्तवमें १४३ सा० है ।।
"हको सि एक्को चैव पत्थलो सुक्क महसुक्क - कप्पे । तम्मि श्राउस्स श्र संविट्ठी एसा । १६ ।।
अर्थ- शुक्र महाशुक कल्प में महाशुक नामक एक ही पटल है। उस महाशुक्र में छायुका प्रमाण १६३ सागर है ॥
१. व. ब. मावमाणामिाणे २. ब. मह्सुक्के