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________________ ५७४ ] तिलोयपण्णतो [ गाथा : ५४१-५४४ एदेसु दिगिदेसु, पाऊ सामंत - अमर - देवीणं । णिय-णिय-दिगिद-देवी-बाउ-पमाणस्स सारिच्छे ।।५४१॥ प्रर्थ—इन दिक्पालोंमें सामन्तदेवोंको देवियोंकी घायु अपने-अपने दिक्पालोंकी देवियों के आयु-प्रमाणके सहण है ।। ५४१ ।। पडिइंदत्तिव्यस्स य, दिगिव-देवीण पाऊ-परिमाणे । एक्कक्क - पल्ल - बड्डी, सेसेसु 'उत्तरदेसु॥५४२।। अर्थ –शेष उत्तर इन्द्रों में प्रतीन्द्रादिक तीन और लोकपाल इनकी देवियों की आयुका प्रमाण एक-एक पल्य अधिक है ।। ५४२ ।। तणुरक्खाण सुराणं, ति-प्परिस-प्पहुवि-आण देवीणं । पाउ-पमाण-णिरूवण-उवएसो संपहि पणट्ठो ॥५४३।। अर्थ-तनुरक्षक देव और तीनों पारिषद आदि देवोंकी देवियोंके प्रायु प्रमाणके निरूपणका उपदेश इससमय नष्ट हो गया है ।। ५४३ ।। बद्धाउं पडि भणिदं, उक्कस्सं मज्झिम जहण्णाणि । घादाबमासेज्जं, अण्ण - सरूवं परवेमो ॥५४४।। अर्थ-यह उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य आयुका प्रमाण बद्धायुष्कके प्रति कहा गया है । घातायुष्कका आश्रय करके अन्य स्वरूप कहते हैं ।। ५४४ ।। प्रथम युगलके पटलोंमें आयुका प्रमाणएत्थ उडुम्मि पढम पत्थले जहण्णमाऊ दिबद्ध-पलिदोवम उक्कस्समद्ध-सागरो वर्म। प्रयं-यहां ऋतु नामक प्रथम पटल में जघन्य आयु डेढ़ पल्योपम और उत्कृष्ट आयु अर्धसागरोपम है ॥ एत्तो तीसमिबयाणं बड्ढी-उड्ढी उच्चदे । तत्य प्रख-सागरोवमं मुहं होदि। भूमो प्रडवाइज्ज-सागरोयमाणि । भूमीदो मुहमणिय' उच्छहेण भागे हिवे तत्थ एक्क. सागरोवमस्स-पग्णारस-भागोवरिम -बड्ढी होदि । पर। १. ८. ब. क. ज. ४. उत्तरदिगिबेसु। २. द. ब. सगरोवमं । ३. द. य. मुहबणिय । ४. ६.ब.क. अ. ठ. बद्ध । ५. ब. सागरोबमष्ट्रि।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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