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तिलोय पण्णत्तो
देवोंकी जघन्य - आयु
उडु पहुवि इंदयाणं, हेट्टिम उक्कस्स प्राउ परिमाणं ।
एक्क - समएण श्रहियं, उवरिम पडले जाऊ ।।५१३।।
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अर्थ - ऋतु आदि इन्द्रकोंमें अधस्तन इन्द्रक सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रयुके प्रमाणमें एक समय मिलाने पर उपरिम पटल में जघन्य आयुका प्रमाण होता है ।। ५१३||
तेत्तीस उवहि- उबमा, पल्ला संखेज्ज - भाग-परिहीणा । सट्ट सिद्धि णामे, मण्णंते केइ
[ गाथा : ५१३ - ५१७
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पाठान्तरम् ।
अर्थ – कोई आचार्य सर्वार्थसिद्धि नामक पटल में पल्यके असंख्यातवें भागसे रहित तेतीस सागरोपम प्रमाण जघन्य आयु मानते हैं ।। ५१४॥
पाठान्तर ।
सोहम्म- कप्प - पढमिवयम्मि पलियोयमं हुवे एककं । सम्वणिगिट्ट सुराणं, जहण्ण-आउस परिमाणं ।। ५१५ ।।
श्रवशऊ ।।५१४ ।।
प१ ।
अर्थ- सौधर्म कल्पके प्रथम इन्द्रकमें सब निकुष्ट देवोंकी जघन्य प्रयुका प्रमाण एक पत्योपम है ।१५१५ ॥
इन्द्रोंके परिवार देवों की प्रायु
प्रड्ढा इज्जं पल्ला, श्राऊ सोमे जमे य पसेवकं ।
तिम्णि कुबेरे वरुणे, किंचूणा सत्रक दिव्याले ॥ ५१६ ॥
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५ । ५ । ३ । ३ ।
- सौधर्म इन्द्रके दिक्पालोंमें सोम और यमकी अढ़ाई ( २३ ) पस्योपम, कुबेरकी तीन
(३) पस्योपम और वरुण की तीन ( ३ ) पल्योपमसे किञ्चित् न्यून आयु होती है ।। ५१६ ।।
सक्कदो सेसेसु वविखण इंदेसु लोयपालागं ।
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एक्क्क - पल्ल- श्रहिग्रो, श्राऊ सोमावियाण पक्कं ।। ५१७ ।।
अर्थ- सौधर्म इन्द्रके अतिरिक्त शेष दक्षिण इन्द्रोंके सोमादिक लोकपालोंमेंसे प्रत्येककी आयु एक-एक पल्य अधिक है ।। ५१७।।