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गाथा ! ५१८-५२२ ] अट्ठमो महायिारो
[ ५६७ ईसाणिव - विगिदे, प्राऊ सोमे जमे ति - पल्लाई। किंचूणाणि कुबेरे, वरुणम्मि य सादिरेगाणि ॥५१८।।
३ । ३ । ३।३। प्रर्थ-ईशान इन्द्र के लोकपालों में सोम और यमको आयु तीन तीन पत्य, कुबेरको तीन पल्यसे कुछ कम तथा वरुणकी कुछ अधिक तोन पल्य है ॥५१॥
ईसाणावो सेसय - उत्तर - इंदेसु लोयपालाणं ।
एक्केषक-पल्ल-अहिओ, पाऊ सोमावियाण पत्तेक्कं ॥५१॥ अर्थ-ईशानेन्द्र के अतिरिक्त शेष उत्तर इन्द्रोंके सोम-आदिक लोकपालोंमें प्रत्येककी आयु एक-एक पल्य अधिक है ।।५१६।।
सवाण दिगिदाणं, सामारिणय-सुर-वराण पत्तक्कं ।
गिय-णिय-विगिदयाणं, पाउ - पमाणारिण प्राणि ॥५२०॥
अर्थ-सब लोकपालोंके सामानिक देवोंमें प्रत्येकको प्रायु अपने-अपने लोकपालोंकी प्रायुके प्रमाण होती है ॥२०॥
पढमे बिदिए जुगले, बम्हादिसु चउसु आणव-दुगम्मि । पारण - जुगले फमसो, सचिवेसु सरीररक्खाणं ॥५२१॥ पलिदोवमाणि पाऊ, अड्ढाइज्ज हवेवि पढममि । एक्केषक-पल्ल-बड्ढी, पत्तेक्कं उपरि - उरिस्मि ।।५२२॥
अर्थ-प्रथम युगल, द्वितीय युगल, ब्रह्मादिक चार युगल, पानत युगल और आरण युगल इनमेंसे प्रथममें शरीर रक्षकोंकी आयु अढ़ाई पल्योपम और ऊपर-ऊपर सब इन्द्रोंके शरीर रक्षकों की आयु क्रमशः एक-एक पल्य अधिक है । अर्थात् सौधर्म युगलमें २३ पल्य, सानत्कुमार युगलमें ३३ पल्य, ब्रह्म युगल में ४३ पल्य, लान्तव युगलमें ५३ पल्य, शुक्र युगल में ६३ पल्य, शतार युगलमें ७३ पल्य, आनत युगलमें ८६ पल्य और प्रारण युगलमें ९३ पल्य प्रमाण उत्कृष्ट प्राय है ।।५२१-५२२।।
१. द.ब.क. सोमज्जमे।