SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 633
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा । ५०६-५१२] भगो महायिादो [ ५६५ अर्थ-शातक पटल में बीस सागरोपम और चार कला (२०४ सा० ) तथा प्रारण नामक पटल में इक्कीस सागरोपम और दो कला ( २१३ सा० ) प्रमाण उत्कृष्ट प्रायु है ।।५.०८।। अच्चुद-रणामे पडले, बावीस तरंगिणीरमण-उवमाणा'। तेवीस सुदंसणए, अमोघ - पडलम्मि चउवोसं ।।५०६॥ २२ । २३ । २४। अर्थ-अच्युत नामक पटलमें बाईस सागरोपम, सुदर्शन पटलमें तेईस सागरोपम और अमोघ पटलमें चौबीस ( २४ ) सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट प्रायु है ॥५०६।। पणुवीस 'सुप्पबुद्ध, जसहर-पडलम्मि होंति छठवीसं । सत्तावीस सुभद्द, सुविसाले अट्ठबीसं च ॥५१०॥ २५ । २६ । २७ । २८॥ प्रर्प-सुप्रबुद्ध पटल में पच्चीस ( २५ ), यशोधर पटल में छब्बीस { २६ ), सुभद्र पटलमें सत्ताईस ( २७ ) और सुविशाल पटलमें अट्ठाईस ( २ ) सागरोपम प्रमारण उत्कृष्ट आयु है ॥५१०॥ सुमणस-णाम उणतीस तीस सोमणस-णाम-पडलम्मि । एक्कचीसं पोविकरम्मि बत्तीस आइच्चे ॥११॥ २९ । ३० । ३१ । ३२ । मर्य-सुमनस नामक पटलमें उनतीस ( २९), सौमनस नामक पटलमें तीस (३०), प्रीतिङ्कर पटलमें इकतीस ( ३१ ) और आदित्य पटलमै बत्तीस सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है ॥५११॥ सम्बट्ट-सिद्धि-णामे, तेवीसं वाहिणीस - उवमारणा । उक्कस्स जहण्णम्मि य, णिद्दिई बीयरागेहि ॥५१२॥ ३३ 1 अर्थ-वीतराग भगवान्ने सर्वार्थसिद्धि नामक पटलमें उत्कृष्ट एवं जघन्य आयुका प्रमाण तैतीस ( ३३ ) सागरोपम कहा है ।।५१२॥ १. द.ब. क. ज. ठ. उवमा। २. द. ब. क. ज.. सुष्पबुढी। ३. द. 4. सोम ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy