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________________ ५६४ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा । ५०४-५०८ अर्थ – ब्रह्म कल्पके ब्रह्मोत्तर नामक अन्तिम पटल में उत्कृष्ट प्रायुका प्रमाण ( १० ) सागरोपम है ||५०३ ॥ बम्हहिदयम्मि' पडले, बारस कल्लोलिणीस उमाणं | चोट्स- पीरहि उवमा, "उनकस्साऊ हवंति संतवए ॥ ५०४ ॥ १२ । १४ । अर्थ- ब्रह्महृदय पटल में बारह सागरोपम और लान्तव पटलमें चौदह सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट श्रायु है ।। ५०४ ॥ महसुष णाम पडले, सोलस-सरिया हिणाह उब माणा । सहस्सा रे, तरंगिणीरमण अष्टुरस - उवमाणा ।। ५०५ ॥ १६ । १८ । अर्थ - महाशुक्र नामक पटल में सोलह सागरोपम और सहस्रार पटल में अठारह सागरोपम प्रमारण उत्कृष्ट आयु है ।। ५०५ ॥ आणदणामे पडले, अट्ठारस सलिलरासि उवमाणा । उपकरसाउ - पमा, चत्तारि कलाओ छक्क हिदा ।।५०६ ।। १८ । है । अर्थ-आनत नामक पटल में अठारह सागरोपम और छहसे भाजित चाय कला (१८६ सा० ) प्रमाण उत्कृष्ट श्रायु है ॥१५०६ ॥ एक्कोणवीस वारिहि उदमा दु-कलाओ पाणवे पडले । पुप्फगए बीसं चिथ तरंगिणीकंत उवमाणा ।।५०७ ।। · सा १९ । २ । सा २० । अर्थ - प्राणत पटल में उन्नीस सागरोपम और दो कला ( १६३ सा० ) तथा पुष्पक पटल में बीस सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट श्रायु है | १५०७ ॥ 1 aliबुरासि उवमा, चत्तारि कलानो सादगे पडले । इगियोस जलहि- उमा, श्रारण-नामम्मि दोणि कला ॥ ५०८ ॥ सा २० | क ४ । सा २१ । १ । १. द. ४. बह्रिदयमिह । २. द. ब. क. ज. ठ. कप्परसाळ ॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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