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________________ गाथा । ४९९-५०३ ] अट्ठमो महाहियारो [ ५६३ अर्थ-तीन सागरोपम एवं तीन कला ( ३६ सा. ) प्रमाण वनमाल इन्द्रको तया चार सागरोपम और एक कला ( ४३ सा० ) प्रमाण नाग-पटलमें उत्कृष्ट प्रायु है ।।४९८॥ चत्तारि सिंधु-उवमा, छच्च कला गरुड-णाम-पडलम्मि। पंचण्णव - उवमाणा, चत्तारि कलाओ लंगलए' ॥४६॥ सा ४। : । सा ५।। मयं-गरुड़ नामक पटल में चार सागरोपम और छह कला ( ४ सा.) तथा लाङ्गल पटलमें पांच सागरोपम एवं चार कला ( ५४ सा० ) प्रमाण उत्कृष्ट आयु है ॥४६६।। छट्टोवहि-उबमारणा, वोणि कला इंदयम्मि बलभद्दे । सत्त-सरिरमण-उवमा, माहिद-दुपस्स चरिम-पडलम्मि ।।५००।। सा ६ । है । सा७ । प्रयं-बलभद्र इन्द्रकमें छह सागरोपम और दो कला ( ६३ सा०) तथा माहेन्द्र युगलके अन्तिम { 'चक्र नामक ) पटलमें सात (७) सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट आयु है ।।५००।। सत्तंबुरासि-उवमा, तिणि कलामो चउक्क-पविहत्ता। उक्कस्साउ - पमाणं, पढ़मं पडलम्मि बम्ह-कप्पस्स ॥५०॥ सा७ । । अर्थ-ब्रह्म कल्पके प्रथम पटलमें उत्कृष्ट आयुका प्रमाण सात सागरोपम और चार विभक्त सीन कला ( ७१ सा० ) है ।।५०१॥ प्रदण्णव-उवमाणा, दु-कला सुरसमिदि-णाम-पडलस्मि । णव-रयणायर-उवमा, एक्क - कला बम्ह - पडलम्हि ।।५०२॥ सा ८।३। सा ९ । । अर्थ-सुरसमिति नामक पटलमें आठ सागरोपम और दो कला ( ८१ सा० ) तथा ब्रह्म पटल में नौ सागरोपम और एक कला ( ९२ सा० ) प्रमाण उत्कृष्ट आयु है ।।५०२।। बम्हुत्तराभिधाणे, चरिमे पडलम्मि बम्ह - कप्पस्स । उक्कस्साउ-पमाणं, बस सरि - रमणाण उवमाणा ॥५०३॥ १. द.ब.क. ज. ठ. लिंगलए।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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