________________
५६२ ]
तिलोयपण्णत्ती
एक.
श्रयं - अंक क्रमसे चौदह स्थानों में शून्य, आठ और ( १८०००००००००००००० ) पत्य प्रमाण प्रभङ्कर पटल में उत्कृष्ट प्रायु है ।। ४९३ ।। चोट्स-ठाणे-छक्का, अक्क कमेण होंति पल्लाणि 1
दोणि कलाओ 'पिट्ठक पडले आउस्स उक्कस्सो ||४६४ ||
१८६६६६६६६६६६६६६६ | ।
अर्थ – पसे चौदह स्थानों में छह आठ और एक इतने पल्य एवं दो कला ( १८६६६६६६६६६६६६६६ पल्य ) प्रमाण पृष्ठक पटल में उत्कृष्ट आयु है || ४९४ ॥ चोस ठाणेसु तिया, गवेषक अंक वकमेण पल्लारिं ।
एक्क कला गज-गामे, पडले आउस्स उबकस्सो ||४६५ ||
१९३३३३३३३३३३३३३३ । ३ ।
अर्थ-अक क्रम से चौदह स्थानों में तीन, नो और एक इतने पल्य एवं एक कला ( १६३३३३३३३३३३३३३३) प्रमाण है ।।४६५॥
[ गाया । ४६४-४८
इतने
दोणि पयोणिहि जनमा, उक्कस्साऊ हुवेदि पडलम्मि । घरिम द्वारा णिविट्ठ, सोहम्मीसाण जुगलम्मि ||४६६ ॥
P
·
सा २ ।
अर्थ- सौधर्मेशान युगल के भीतर अन्तिम स्थान में निविष्ट पटल में दो सागर प्रमाण उत्कृष्ट श्रायु है ||४९६॥
उक्करसाउ पमाणं, सणवकुमारस्स पढम-पडलम्मि ।
दोणि पयोणिहि उवमा, पंच कला सत्त पहिता ॥ ४६७॥
१. ब. पिट्ठव ।
सा २ । ५ ।
अर्थ- सानत्कुमारके प्रथम पटल में उत्कृष्ट श्रायुका प्रमाण दो सागरोपम और सातसे भाजित पाँच कला ( २४ सागर ) है ||४६७ |
सिणि महण्णव उवमा, तिष्णि कला इंदयम्मि वणमाले ।
चत्तारि उवहि उथमा, एक्क-कला नाग पडलम्भि ||४६८ || ३। क । सा ४ । ३ ।
!
7
C