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________________ ५६० ] तिलोयपण्णत्ती (गाथा : ४८५-४८८ अर्थ-अंक क्रमसे चौदह स्थानों में शून्य दो और एक, इतने (१२००००००००००००००) पल्य प्रमाण स्फटिक इन्द्रक एवं उसके अंगोबद्ध और प्रकीर्णक विमानोंमें उत्कृष्ट आयु होती है ॥४८४॥ चोहस-ठाणे छक्का, दुगमेषकक - कमेण पल्लारिण । दोणि कलाओ तबरिणय - इंबए प्राउ उक्कस्सा ॥४५॥ १२६६६६६६६६६६६६६६ । । । प्रर्थ-अंक क्रमसे चौदह स्थानोंमें छह, दो और एक, इतने पत्य एवं दो कला ( १२६६६६६६६६६६६६६६३ पल्य } प्रमाण तपनीय इन्द्रक एवं उसके श्रेणीबद्धादिकमें उत्कृष्ट पायु है ॥४८५।। पण्णरस - ठाणेसुतियाणि एक्कं कमेण पल्लाणि । एक्का कला य मेधेदमम्मि पाउस्स उपकस्सा ॥४६॥ १३३३३३३३३३३३३३३३ ।।। मर्थ-क्रमश: पन्द्रह स्थानों में तीन और एक इतने पल्य एवं कला ( १३३३३३३३३३३३३३३३७ पल्य ) प्रमाण मेघ इन्द्रकमें उत्कृष्ट आयु है ।।४८६॥ चोदस-ठाणे सुण्णं, चउ-एक्कंक-क्कमेण पल्लाणि । उक्कस्साऊ अभिषयम्मि सेढो - पहण्णएसु च ॥४७॥ १४००००००००००००००। प्रर्ष-अंक क्रमसे चौदह स्थानोंमें शून्य, ..चार और एक, इतने ( १४०००००००००००००० ) पल्य प्रमाण अभ्रइन्द्रक तथा श्रेणीबद्ध तथा प्रकीर्णक विमानोंमें उत्कृष्ट आयु है 11४८७।। चोड्स-ठाणे छक्का, चउ-एक्कंक-कर्मण पल्लाणि । दोणि कला हारिद्दयम्मि आउस्स उपकस्सो ॥४८८|| १४६६६६६६६६६६६६६६ । । । पर्य-अंक क्रमसे चौदह स्थानोंमें छह, चार और एक, इतने पल्य और दो कला ( १४६६६६६६६६६६६६६६३ पत्य } प्रमाण हारिद्र इन्द्रकमें उत्कृष्ट आयु है ।।४८८॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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