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तिलोयषण्णसी
[ गाथा : ४७५-४७९ घोहस-ठाणे सुखणं, छक्क अंक - कमेण पल्लाणि । उपकस्साऊ कंचण - पामे सेढो - पइण्णएसपि ॥४७५।।
अर्ष-अंक क्रमसे चौदह स्थानों में शून्य और छह, इतने ( ६००००००००००००००) पल्य प्रमाण कञ्चन नामक इन्द्रक और उसके श्रेणीबद्ध तथा प्रकीर्णक विमानों में उत्कृष्ट आयु है ॥४७॥
पण्णरस - टाणेस, छक्का अंकक्कमेण पल्लाणि । दोणि कलाओ कोहिन - पारे प्र.उस्स उहालो ।।७।।
अर्थ-अंक क्रमसे पन्द्रह स्थानों में छह, इतने पल्य और दो कला (६६६६६६६६६६६६६६६३ पल्य ) प्रमाण रोहित नामक पटलमें उत्कृष्ट आयु है ॥४७६।।
चोइस-ठाणेसु तिया, सत्तंक - कमेण होति पल्लाणि । एक्क - कल च्चिय चचियम्मि पाउस्स उक्कस्सो ॥४७७॥
__ ७३३३३३३३३३३३३३३ । । । अर्थ-अंक क्रमसे चौदह स्थानों में तीन और सात, इतने पल्य तथा एक कला - (७३३३३३३३३३३३३३३७ पल्य ) प्रमाण चंचत् ( चन्द्र ) इन्द्रको उत्कृष्ट प्रायु है ।।४७७।।
चोदस-ठाणे सुष्णं, अट्ठक-कमेण होंति पल्लाणि । उक्कस्साऊ मरुविचयम्मि सेढी - पहण्णएसु च ॥४७॥
८०००००००००००००० ।
अर्थ-अंक क्रमसे चौदह स्थानोंमें शून्य और आठ, इतने पल्य प्रमाण मरुत् इन्द्रक तथा उसके श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक विमानोंमें उत्कृष्ट आयु है ।।४७८||
चोदस-ठाणे छक्का, अट्ठक-कमेण होति पल्लाणि । दु-कलाओ 'रिद्धिसए, उपकस्साऊ समग्गम्मि ॥४७६॥
२६६६६६६६६६६६६६६ ।।।
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१. ६. ब. क. ब. 8. विदिसए ।