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तिलोय पणती
[ गाथा: ४५३ - ४५४
अर्थ- सौधर्मादिक आठ और श्रानत आदि चार ( ८+१= 8 ) कल्पों में इन्द्रोंके मुकुटों में क्रमशः शुकर, हरिणी, महिष, मत्स्य, भेक, सर्प, छगल, वृषभ और कल्पतरु, ये नौ चिह्न कहे गये हैं । इन चिह्नोंसे देवोंके मध्य में वे इन्द्र पहिचाने जाते हैं ।। ४५१-४५२ ।।
इंदाणं चिण्हाणि, पत्तेषकं ताव जा' सहस्सारं । प्राणद- चारण- जुगले, चोट्स - ठाणेसु वोच्खामि ॥। ४५३ ||
सुवर- हरिणी- महिसा मच्छो कुम्मो य मेक-ह-हत्थी ।
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दाहि गवय-छगला, वसह-कल्पतरू' मउड- मज्झे ।।४५४ ।।
पाठान्तरम् ।
अर्थ- सहस्रारकल्प पर्यन्त प्रत्येक इन्द्रके तथा प्रानत और आरण युगल में इसप्रकार चौदह स्थानोंके चिह्न कहते हैं । शूकर, हरिणी, महिष, मत्स्य, कूर्म, भेक, अश्व, हाथी, चन्द्र, सर्प, गवय, छगल वृषभ और कल्पतरु ये चौदह चिह्नमुदरे मध्य हो
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१. ब. जाथ । २. ८. व. क. ज. ठ. हयचं दिवय छगला पंचतत्र ।
पाठान्तर ।