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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ४४२-४४६ अर्थ-शक्र-युगल ( सौधर्म एवं ईशान इन्द्र ) के वालग और पुष्पक नामक यान-विमान तथा सानत्कुमार आदि दो इन्द्रोंके सौमनस एवं धीवृक्ष नामक यान-विमान हैं ॥४४१।।
बम्हिदादि-चउक्के, याण - विमाणाणि सव्वदोभद्दा ।
पोदिक'- रम्मक - गामा, मणोहरा होति चत्तारि ॥४४२॥ अर्थ-ब्रह्मन्द्र प्रादि चार इन्द्रोंके क्रमश: सर्वतोभद्र, प्रीतिक ( प्रीतिकर ), रम्यक और मनोहर नामक चार यान-विमान होते हैं ।।४४२।।
प्राणव-पाणद-इंदे, लच्छी-मालित्ति - जामवो होदि ।
पारण-कप्पिद-दुगे, याण - बिमाणं विमल - णामं ।।४४३॥ - अर्थ-मानत और प्राणत इन्द्रके लक्ष्मी-मालती नामक यान-विमान तथा आरण कल्पेन्द्र युगलमें विमल नामक यान-विमान होते हैं ।।४४३।।
सोहम्मादि-चउपके, कमसो अवसेस-कप्प-जुगलेसु। होंति हु पुश्वुसाई, याण - विमाणाणि पत्तोक्कं ॥४४४॥
पाठान्तरम् । अर्थ- सौधर्मादि चारमें और शेष कल्प-युगलों में क्रमश: प्रत्येकके पूर्वोक्त यान-विमान होते हैं ।।४४४।।
पाठान्तर। एक्कं जोयण - लक्खं, पत्तेक्क दोह-यास-संजुत्ता ।
याण - विमाणा दुविहा, विक्किरियाए सहावेणं ॥४४५॥
अर्प–इनमेंसे प्रत्येक विमान एक लाख ( १००००० ) योजन प्रमाण दीर्घता एवं ध्याससे संयुक्त हैं । ये विमान दो प्रकारके हैं, एक विक्रियासे उत्पन्न हुए और दूसरे स्वभावसे ॥४४५।।
ते विक्किरिया-जावा, पाणविमाणा धिणासिणो होति । अविणासिणो य णिचं, सहाय - जादा परम-रम्मा ॥४४६॥
१. द.व.क.ब.उ. पीदिकर। २. द.ब.क, ज.ठ. घुब ।