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गाथा: ४३७-४४१ ]
अम महाहियारो
बारस-सहस्स-जोपण दीहत्ता पण सहस्स-विवखंभा । लेकर दो पहुदि कयसोहा ॥४३७॥ |
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१२००० | ५००० ।
अर्थ - उत्तम वेदी श्रादिसे शोभायमान उन नगरोंमेसे प्रत्येक बारह हजार ( १२००० ) योजन लम्बे और पाँच हजार ( ५००० ) योजन प्रमाण विस्तार सहित है ।। ४३७।।
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गणिका - महत्तरियों के नगर
गणिया महत्तरीणं, समचउरस्सा पुरीश्रो विदिसासु । एक्कं जोयण - लक्खं, पत्तेक्कं दीह वास जुबा ||४३६ ||
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१००००० | १००००० ।
पर्थ - विदिशाओं में गणिका - महत्तरियोंकी समचतुष्कोण नगरियां हैं। इनमें से प्रत्येक एक-एक लाख ( १०००००, १००००० ) योजन प्रमाण दीर्घता तथा विस्तारसे युक्त
है || ४३८ ॥
सम्मेसु णयरेसु पासादा विव्व-विविह-रयणमया ।
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णश्चंत विचित्त धया, पिराचम सोहा विरायंति ||४३६||
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अयं - सब नगरों में नाचती हुई विचित्र ध्वजाओंसे युक्त और अनुपम शोभाके धारक दिव्य विविध रत्नमय प्रासाद विराजमान हैं ॥४३९ ॥
जोयण-सय-वोहत्ता, ताणं पण्णास मेत्त वित्थारा 1
मुह मंडव पहुवीहि, विचित्त रूबेहिं संजुता ||४४० ||
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सहित और विचित्र रूप मुख मण्डप आदिसे संयुक्त हैं ॥४४० ॥
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अर्थ - ये प्रासाद एक सौ ( १०० ) योजन दीर्घ, पचास (५०) योजन प्रमाण विस्तार
सौधर्मेन्द्र आदिके यान- विमानोंका विवरण -
वालुग- पुष्कग णामा, याण विमारणारिंग सक्क- जुगलम्मि । सोमणसं सिरिवलं, सणवकुमारिद दुमि ||४४१||