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________________ गाथा : ४२८-४३१ ] अट्ठमो महाहियारो [ ५४७ अर्थ-इन वेदियोंके मध्य स्थित अद्भुत कनोंमें अपने अपने परिवारले संयुक्त सी परिषदोंके देव रहते हैं ।।४२७।। तृतीय वेदीका कथन समाप्त हुआ। तवेदोदो गछिय, चउसद्वि-सहस्स-गोयणाणि च । चेदि तुरिम-वेदी, पढमा - मिव सन्द - जयरेसु ॥४२८।। ६४०००। अर्थ-इस वेदोसे चौंसठ हजार ( ६४००० ) योजन प्रागे जाकर सब नगरोंमें प्रथम वेदीके सदृश चतुर्थ वेदी स्थित है ।।४२८॥ एदाणं विच्चाले, वर-रयणमएसु विव्व - भवणेसु । सामाणिय-णाम सुरा, णिवसंते विविह-परिवारा ॥४२६।। तुरिम-वेदो गदा । अर्थ-इन वेदियोंके मध्य में स्थित उत्तम रत्नमय दिव्य-भवनों में विविध परिवार सहित सामानिक नामक देव निवास करते हैं ॥४२९।। चतुर्थ वेदीका कथन समाप्त हुआ। चउसीदी - लक्खाणि, गंतूणं जोयणाणि तुरिमादो । चेदि पंच - वेदो, पढमा मिव सम्व - णयरेसु ॥४३०॥ ८४०००००। अर्थ-चतुथं वेदीसे चौरासी लाख ( ८४००००० ) योजन आगे जाकर सब नगरों में प्रथम वेदीके सदृश पंचम वेदी स्थित है ।।४३०॥ एवारणं विच्चाले, णिय-णिय-पारोहका अणीया य । अभियोगा किबिसिया, पहण्या तह सुरा च तेत्तीसा॥४३॥ पंचम-वेदी गदा। अर्थ-इन वेदियों के मध्य में अपने-अपने पारोहक अनीक, पाभियोग्य, किल्बिषिक, प्रकीर्णक तथा त्रास्त्रिश देव निवास करते हैं ।।४३१।। पंचम वेदीका कथन समाप्त हुआ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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