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________________ ५४६ ] तिलोय पण्णत्ती णाणाविह तुरेहिं णाणाविह महर - गीय- सद्देहि । ललियमय'- चचणेहि, सुर ायराइं विराजति ||४२३ || 1 - अर्थ- देवोंके नगर नाना प्रकारके तुर्यो ( बादित्रों ), अनेक प्रकारके मधुर गीत-शब्दों और विलासमय नृत्योंसे विराजमान हैं ||४२३ ।। द्वितीयादि वेदियोंका कथन आदिम-पायारादो, तेरस लक्खाणि जोयणे गंतु । चेटु बि बिदिय वेवी, पढमा मिव सव्व णयरेसु ॥४२४ ॥ 1 १३००००० | अर्थ- सब नगरों में आदिम प्राकार ( कोट ) से तेरह लाख ( १३००००० ) योजन जाकर प्रथम ( कोट ) के सदृश द्वितीय बेदी स्थित है ।। ४२४ ॥ [ गाथा : ४२३- ४२७ वेवीणं विचचाले, णिय-जिय-सामी- सरीर रक्खा य । चेट्ठति सपरिवारा, पासावेसु विचित्तेसु ।।४२५।। बिदिय वेदी गदा । श्रयं वेदियों के अन्तराल में प्रद्भुत प्रासादों में सपरिवार अपने-अपने स्वामियोंके शरीररक्षक देव रहते हैं ।। ४३५॥ द्वितीय बेदी का कथन समाप्त हुआ । तेलट्ठी- लक्खा रंग, पण्णास सहस्स जोयणाणि तो । गंतॄण तक्ष्यि वेवी, पहमा मिव सव्य सायरेसु ॥४२६ ॥ · ६३५००००। अर्थ-- सब नगरोंमें इस (दूसरी वेदी) से आगे तिरेसठ लाख पचास हजार (६३५०००० ) योजन जाकर प्रथम ( कोट ) के सदृश तृतीय वेदी है ||४२६ || एदाणं विच्चाले तिप्परिमाणं सुरा विचित्तेसु । चेटूति मंदिरेसु णिय णिय परिवार संजुत्ता ||४२७ ॥ " दिय-वेदी गदा । १. द. ब. क. ज. द. अलिय । २. ६. का. ज. ठ. जोमणे गं दुध, ब. जोय दु व । - - -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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