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गाथा : ४१५ - ४१९ ]
अर्थ-उसी दिशामें
रत्नमय जिनेन्द्र प्रासाद हैं ।।४१४ ॥
अड-जोयण- उब्विद्धो, तेत्तिय वासो हवंति पत्तेक्कं । सेसिवे पासावा, सेसो पुखं व rिण्णासो ॥१४१५।।
अट्टम महाद्दियारो
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अथवा पाकः वन सम्बंधी जिनभवनके सदृश उत्तम
८।६।
अर्थ - शेष इन्द्रोंके प्रासादों मेंसे प्रत्येक आठ (८) योजन ऊँचा और इतने ( ८ यो० ) ही विस्तार सहित है । शेष विन्यास पहले के ही सदृश है ||४१५३ ।
देवियों और वल्लभायोंके भवनों का विवेचन-
इंव प्पासादाणं, समंतो होंति दिव्य पासादा ।
देवी- वल्लहियाणं, णाणावर रयरंग कणयमया ॥४१६॥
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अर्थ – इन्द्र प्रासादोंके चारों ओर देवियों और वल्लभाओंके नाना उत्तम रत्नमय एवं स्वर्णमय दिव्य प्रासाद हैं ||४१६ ॥
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देवी भवगुच्छेहा, सक्क- बुगे जोयरपाणि पंच- सया |
माहिंद दुगे पण्णष्महियाणि च सपाणि पि ॥ ४१७ ।।
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५०० । ४५० ।
अर्थ- सौधर्म और ईशान इन्द्रकी देवियोंके भवनोंकी ऊंचाई पाँच सौ ( ५०० ) योजन तथा सानत्कुमार एवं माहेन्द्र इन्द्रकी देवियों के भवनोंकी ऊँचाई चार सौ पचास (४५० ) योजन है ॥ ४१७ ॥
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बम्वि संतविंदे, महसुविकदे सहस्सयारिखे ।
आरपब- पंहृदि- चउक्के, कमसो पण्णास हीगाणि ॥। ४१८ ।।
यो० ३०० यो०, २५० यो० और २०० योजन है || ४१८ ||
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४०० | ३५० । ३०० | २५० । २०० ।
अर्थ- ब्रह्म ेन्द्र, लान्तवेन्द्र, महाशुकेन्द्र, सहस्रारेन्द्र और मानत आदि चार इन्द्रोंकी देवियोंके भवनोंकी ऊँचाई क्रमश: पचास-पचास योजन कम है । अर्थात् क्रमश: ४०० यो०, ३५०
बेयी पुर उदयादो, वल्लभिया मंदिराण - उच्छे हो ।
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सध्येसु इंवेसु जोयण
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वीसाहिओ होदि ॥ ४१६॥