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________________ ५४२ ] तिलोय पण्णत्ती सुधर्मा सभा सक्कस मंदिरावो, ईसाण दिसे सुधम्म-णाम-सभा । ति सहस्स-कोस- उदया, उ-सय-दोहा तदद्ध-विस्थारा ॥ ४१० ॥ ३००० | ४०० | २०० । अर्थ- सौधर्म इन्द्र के भवनसे ईशान दिशामें तीन हजार ( ३००० ) कोस ऊंची, चार सौ ) कोस लम्बी और इससे आये अर्थात् २०० कोस विस्तारवाली सुधर्मा नामक सभा (४०० है ।।४१०।। नोट - सुधर्मासभाकी ऊँचाई ३०० कोस होनी चाहिए, क्योंकि अकृत्रिम मापोंमें ऊँचाई का प्रमाण प्राय: लम्बाई + चौड़ाई होता है । २ [ गाथा : ४१० - ४१४ रिये garveer कोसा चउसट्ठि तद्दलं रुवो । सक्क प्यासाद - सरिसाश्री ॥ ४११ ।। सेसा यण्णणाओ - ६४ । ३२ । अर्थ-सुधर्मा सभा द्वारोंकी ऊँचाई चौंसठ ( ६४ ) कोस और विस्तार इससे आधा अर्थात् ३२ कोस है । शेष वर्णन सौधर्म इन्द्र के प्रासाद सदृश है ।।४११।। रम्मा सुधम्माए, विfवह विणोदेहि कोडदे सको । बहुवि-परिवार जुदो भुजंतो विविह-सोक्खाणि ॥ ४१२ ॥ प्रथं - इस रमणीय सुधर्मा सभामें बहुत प्रकारके परिवार से युक्त सौधर्म इन्द्र विविध सुखोंको भोगता हुआ अनेक विनोदोंसे कीड़ा करता है ।।४१२ ।। उपपाद सभा - w तत्थेसाण दिलाए, उववाद सभा हुवेदि पुव्व-समा दिप्पंत' रयण सेज्जा, विष्णास विसेस - सोहिल्ला ।।४१३ ।। - वहीं ईशान दिशा में पूर्वके सदृश उपपाद सभा है । यह सभा देदीप्यमान रत्नशय्याओं सहित विन्यास - विशेषसे शोभायमान है ।। ४१३ || जिनेन्द्र प्रासाद १. द. ख.क. ज. उ. तिप्यंत । तीए दिसाए चेट्ठदि, वर-रयणमझो जिणिद-पासावो । पुत्र सरिच्छो श्रहवा, पंडुग जिणभवण सारिच्छो || ४१४ ॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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