SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 605
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा ! ३८५-३८९ ] अट्ठौ महायिारो [ ५३७ सोलस-सहस्स-पण-सय-देवोओ अट्ठ अग्ग-महिसीओ। संतक - ईदम्मि पुढं, णिरुवम - रूबानो रेहति ।।३८५।। ८ | १६५००1 अर्थ-लान्तवेन्द्र के अनुपम रूपवाली सोलह हजार पाँच सो ( १६५०० ) देवियां और __ आठ अग्न-महिषिया शोभायमान हैं ।।३८५।। १६५००%=( अग्र० ८४ २००० परिवार देवियाँ }+ ५०० वल्लभा । प्रह-सहस्सा दु-सया, पण्णब्भहिया हुति देवीग्रो । अग्ग-महिसोयो अट्ट य, रम्मा महसुक्क - इंदम्मि ॥३८६॥ ८ । ८२५० । अर्थ-महाशुक्र इन्द्र के पाठ हजार दो सौ पचास ( २५०) देवियों और आठ अग्र महिषियों होती हैं ।।३८६॥ ८२५० = ( अग्र० ८x१००० परिवार देवियां )+२५० बल्लभा । चत्तारि-सहस्साई, एक्क-सयं पंचवीस - अभिहियं । देवीपो भट्ट जेट्टा, होति सहस्सार - इंदम्मि ॥३८७॥ ____८ । ४१२५। अर्थ- सहस्रार इन्द्र के चार हजार एक सौ पच्चीस ( ४१२५ ) देवियों और पाठ ज्येष्ठ देवियां होती हैं ॥३७॥ ४१२५= ( अग्न० ८४५०० परिवार देवियों )+१२५ वल्लभा । प्राणव-पारपद-प्रारण-अनचुद-इंवेसु भट्ट जेट्ठाओ । पसेवक दु • सहस्सा, तेसट्ठी होंति देवीओ ॥३८॥ ८।२०६३ । अपं-आनत, प्राणत, प्रारण और अच्युत इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके आठ अग्र-महिषिया और दो हजार तिरेसठ ( २०६३ ) देवियां होती हैं ।।३।। २०६३=( अग्र० ८४२५० परिवार देवियाँ)+६३ वल्लभा । मतान्तरसे सौधर्मेन्द्रको देवियोंका प्रमाणखं-णह-णहट्ट-दुग-इगि-अट्ठय-छस्सस-सस्क - वेवीभो। लोयविषिच्छि - गंथे, हुवंति सेसेसु पुष्वं व ॥३६॥ ७६८१२८०००। पाठान्तरम् ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy