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तिलोयपणणती
[ गाथा : ३८१-३४ देवीहि पडिदेहि, सामाणिय - पहुवि-वेव • संघहिं ।
सेविजंते णिचं, इंदा बर - घर - चमर-धारोहिं ॥३१॥
अर्थ उत्तम छत्रों एवं चमरोंको धारण करनेवाली देवियों, प्रतीन्द्रों और सामानिक आदि देव-समूहोंके द्वारा इन्द्रोंको नित्य ही सेवा की जाती है ।।३६१।।
प्रत्येक इन्द्रकी समस्त देवियोंका प्रमाण--- सद्वि-सहस्सब्भहियं, एक्कं लपखं एवंति परोक्कं । सोहम्मीसाणिवे, अट्टहा अग्ग • देवीओ ॥३८२॥
१६००००।८। प्रर्प-सौधर्म और ईशान इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके एक लाख साठ हजार ( १६००००) देवियाँ तथा आठ अग्र-देवियां होती हैं ।।३८२।।
विशेषार्य-सौधर्म और ईशान इन्द्रों में से प्रत्येक इन्द्रको अग्र देवियां ८ हैं और वल्लभा ३२००० हैं तथा प्रत्येक प्रश्न देवीकी १६००० परिवार देवियां होती हैं । इसप्रकार सौधर्म अथवा ईशान इन्द्रको समस्त देवियों-१६००००-( ८४ १६०००)+३२००० हैं। इसीप्रकार सर्वत्र जानना चाहिए।
अग्ग-महिसोमो अठं माहिव-सणक्कुमार इवाणं । बाहतरि सहस्सा, देवोनो होति पत्तेक्कं ॥३३॥
८।७२०००। अर्थ–सानत्कुमार और माहेन्द्र इन्द्रों से प्रत्येकके आठ अन-महिषियां तथा बहत्तर हजार (७२०००) देवियां होती हैं ।।३८३।। ७२०००-( अग्र०८४८००० परिवार देवियाँ)+८००० वल्लभा ।
अग्ग-महिसीनो अट्ठ य, चोत्तीस-सहस्सयाणि देवोत्रो । णिस्यम - लावण्णाओ, सोहते बम्ह - कपिदे ।।३८४॥
पर्य-ब्रह्मकल्पेन्द्रके अनुपम लावण्यवाली पाठ अन-महिषियों और चौतीस हजार ( ३४००० ) देवियां शोभायमान हैं ।।३८४।।
३४००० =( अग्र० ८ x ४००० परिवार देवियां )+२००० वल्लभा ।